की तेरी ही गलियों में आवारा शाम बनकर आऊंगा
की कभी धूप तो कभी छावं बनकर आऊंगा
वैसे कभी इतने अंडे तो गणित में भी नहीं मिले
जितने डंडे तेरे गालियों से खाके आऊंगा
की आज कल के बच्चे पढ़ते लिखते कहा हैं
उनका बस फोन पे यही लगा रहता है, मेले बाबू ने खाना खाया