किसी शामत का डर
नहीं है मुझको
मैं तो तेरी उस रुस्बाई
से डरता हूँ।
किसी ईमारत की ख्वाइश
नहीं है मुझको
मैं तेरे इस ताज-ए-हुस्न
पे मरता हूँ।
किसी इबादत की जरूरत
नहीं ह
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किसी शामत का डर
नहीं है मुझको
मैं तो तेरी उस रुस्बाई
से डरता हूँ।
किसी ईमारत की ख्वाइश
नहीं है मुझको
मैं तेरे इस ताज-ए-हुस्न
पे मरता हूँ।
किसी इबादत की जरूरत
नहीं ह