अंजान's image

अजीब सी हैं उलझने
अजीब सा समाधान है
जिस मंजिल को तलाशता है तू
क्यों राहें उससे अंजान है।

क़भी ढंग से तो कभी बेढंग ही
काटता तू चट्टान है
जिस मूरत को तराशता है तू
उस बुत में भी क्या जान है।

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