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मैं चैन व सुकून छोड़ आया गाँव में

जिंदगी की दौड़, धूप और छाँव में।

न जाने छाले कितने ही पड़े पाँव में।

शहर की ऊँची इमारतों के लगाव में।

मैं चैन व सुकून छोड़ आया गाँव में।।


नये में ही शहर की सड़के भाँती हैं।

फिर याद गाँव की गली की आती हैं।

चमक-दमक विलासिता के बहाव में।

मैं चैन व सुकून छोड़ आया गाँव में।।


महँगे होटल के खानों में वो बात नहीं।

कब से खाया खाना माँ के हाथ नहीं।

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