
बंदिशें इस जमाने की जब मेरी उड़ान बांधने लगी।
फलक पर रौशनी देखकर मैं दहलीज लांघने चली।
उन्मुक्त गगन तले, अरमान पिरोते मैं ऐसे पली बढ़ी।
बीच मझधार पतबार ले, मैं बनती उम्मीद की कड़ी।
च
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बंदिशें इस जमाने की जब मेरी उड़ान बांधने लगी।
फलक पर रौशनी देखकर मैं दहलीज लांघने चली।
उन्मुक्त गगन तले, अरमान पिरोते मैं ऐसे पली बढ़ी।
बीच मझधार पतबार ले, मैं बनती उम्मीद की कड़ी।
च