
मुंडेऱ चिड़ियों से चहचहाती नही
पराग फूल पे भंवरे बुलाती नही
दस्तक हवाएं भी अब देती नहीं
एहसासें रुह को समझाती नहीं
बातें पुरानी दिल बहलाती नहीं
सुबह बाहें फैलाये बुलाती नहीं
यादें अब और मुझे सताती नहीं
जुबा
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मुंडेऱ चिड़ियों से चहचहाती नही
पराग फूल पे भंवरे बुलाती नही
दस्तक हवाएं भी अब देती नहीं
एहसासें रुह को समझाती नहीं
बातें पुरानी दिल बहलाती नहीं
सुबह बाहें फैलाये बुलाती नहीं
यादें अब और मुझे सताती नहीं
जुबा