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तुम नदी हो मेरी

तुम एक नदी हो।
और मैं तुम्हारे किनारी बसी  एक सभ्यता।
मेरा कतरा कतरा तुमसे निर्मित है।
जब तुम्हारा पानी मेरी सीढ़िया को छूता हुआ बह जाता है।
तब वह बहा ले जाता है  मेरी अन्दर बसी कटुता।
कटुता जो मेरे अंदर रह रह कर बस रही है।
जो मेरे मूल में भी विलीन हो रही है।
पर तुम्हारा निरन्तर प्रवाह जो मेरी आत्मा
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