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सितम देखते हैं full ghazal by Vinit Singh Shayar

आइने में हम अपना ग़म देखते हैं

उन्हें आज कल बहुत कम देखते हैं


हाथ रखते हैं गैरों के कंधे पर जब वो

हाथ को सर पे रख के सितम देखते हैं


हर महीने मनाते हैं वो बर्थ डे और

अपनी शादी में भी हम मातम देखते हैं


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