
आना नहीं था फिर क्यूँ यूँ ही आती है
कुछ तरह से भी वो प्यार जताती है
हम को देख के कमरे में वो चली गई
सामने फिर झुमके में वापस आती है
हमको मजनू बोल बोल के चिढ़ा रही है
ना जाने सखियों को क्या बताती है
रहते हैं खामोश वैसे तो महफ़िल में
वरना मेरी ग़ज़लों पर झूमीं जाती है
ज़ालिम दुनियाँ वालों से छुप छुपकर
हर
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