
याद आ रही है आख़िरी मुलाक़ात साहब
बहके बहके से हमारे वो जज़्बात साहब
भले ही आज तन्हा हैं महफ़िल में यहाँ हम
कभी इन हाथो में था उनका हाथ साहब
मत बेवफ़ा कहो उसे मैं हाथ जोड़ता हूँ
बदल ना पाएँ अपनी ख़यालात साहब
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याद आ रही है आख़िरी मुलाक़ात साहब
बहके बहके से हमारे वो जज़्बात साहब
भले ही आज तन्हा हैं महफ़िल में यहाँ हम
कभी इन हाथो में था उनका हाथ साहब
मत बेवफ़ा कहो उसे मैं हाथ जोड़ता हूँ
बदल ना पाएँ अपनी ख़यालात साहब