
की अब भी चाहिए मुझे साथ किसी का
मुझसे ये दूरी बर्दास्त नही होती
तुम तो थक गए कुछ ही लम्हों में
मुझसे ये अगन बर्दाश्त नही होती
तुम जिसे प्यार कहते हो
वो तुमसे कभी हुआ नही
तुमने सिर्फ मेरे बदन को
देखा ललचाई नज़रों से
और अगर मैं भी तुम्हारे इस
प्यार जो कि हवस है
मेरी नज़रों में तुमसे मांग लूँ
तो क्या तुम दे सकोगे
नही तुम नही दे सकते
तुम मुझे दोगे कुछ बूंद पानी की
जबकि मुझे तो सागर चाहिए
क्योंकि ऐसे तो मैं जल्दी
प्यार करती नही
और अगर मेरे मन में भी
उमड़ा तुम्हारे लिए भावनाओं का ज्वार
तो यकीन करो तुम
बह जाओगे मेरे अंदर के सागर में
तुम्हारा क्या है
तुम बुझा लोगे
अपनी थोड़ी
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