![एक नज़्म तुम्हारे नाम's image](/images/post_og.png)
अब कभी मैं सोचता हूँ, मैंने तुझमें ऐसा क्या देक्खा था,
उस मंज़र से डर लगता है जैसे कोई हादसा देक्खा था।
अब राबता मेरा ख़ुद ही से है
नफ़रत भी ख़ुद से करता हूँ
बस तेरी नज़र तक था सफ़र मेरा लेकिन
अब आवारा सा मैं फिरता हूँ
तलाशता हूँ जो कुछ खोया था मैंने
कभी कभी तो आँसू भी बहा देता हूँ
कभी तो दिन भर तुम्हारा खयाल नहीं आता
कभी पूरी रात तुम पर लिखा लेता हूँ।
कभी सोचता हूँ अपना तो ऐसा खास रिश्ता रहा ही नहीं
तुमने भी मेरे मन मुताबिक कभी कुछ कहा ही नहीं
छोड़ो रहने दो रिश्ते
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