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अपने, पराए में फ़र्क़ ज़रा सा है | विकासवाणी

अपने, पराए में फ़र्क़ ज़रा सा है 

धुंधले रिश्ते, दरम्यान कुहासा है 


कुछ कह दें या चुप रहें हम अब 

मष्तिक जद्दोजहद से भरा सा है 


कोई कहता, कोई सुनता कहाँ 

धक धक करता दिल डरा सा है 


याद आती है गाँव की पगडंडी 

सोच सोच कर दिल भरा सा है 


क्यों शैतानियाँ कम हो गई हैं 

बच्चा अन्दर का मेरे मरा सा है 

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