
अपनी देह जलाकर
सूर्य बांटता है तपिश
मिटाता है अंधकार
असह्य वेदना में भी
मुस्कुराता है हर दम
बांटता है खुशियां
सूर्य की वेदना को
आत्मसात कर मैंने
आज अर्घ्य चढ़ाया
उनके परमार्थ पर
गौरवान्वित हो
उनके आशीष के लिए
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अपनी देह जलाकर
सूर्य बांटता है तपिश
मिटाता है अंधकार
असह्य वेदना में भी
मुस्कुराता है हर दम
बांटता है खुशियां
सूर्य की वेदना को
आत्मसात कर मैंने
आज अर्घ्य चढ़ाया
उनके परमार्थ पर
गौरवान्वित हो
उनके आशीष के लिए