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सिपाही हैं हम 4/40, 40 poems in 40 Days

सिपाही हैं हम……



मैं सिपाही हूं जरूर, 

पर मैं, मैं भी तो हूं, 

एक आम इंसान जैसा

मिलना चाहोगे मुझसे ?


मुझे लड़ना पसंद है

पर मुझे लड़ाई पसंद नहीं

मुझे रक्त बहाना भी पसंद नहीं

न अपना न दुश्मन का


मगर उतना रक्त तो बहाना है

जितने में मेरा देश सुरक्षित रहे

मेरे अपने आश्वस्त रहें

उससे मगर एक भी बूंद ज्यादा नहीं

यही कर्म है मेरा और मेरा धर्म भी यही


मैं भी रिश्तों में बंधा हूं

मां,बाप, भाई, बहन, दोस्त, सखा

और मैं जानता हूं 

मेरे सामने सीमा पार जो खड़ा है

उसके भी वही रिश्ते हैं

उसके भी वही बंधन हैं


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