
कौन बिखर कर यूं खुश होता है भला
ऐसे ,जैसे मुआ होली का रंग होता है
खिलखिला उठता है हवा में उड़ते ही
ये रंग निरा,बिखर के और निखरता है
उभारता है रंगत कोरी हथेलियों की भी
हर चेहरे को गज़ब का श्रृंगार देता है
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कौन बिखर कर यूं खुश होता है भला
ऐसे ,जैसे मुआ होली का रंग होता है
खिलखिला उठता है हवा में उड़ते ही
ये रंग निरा,बिखर के और निखरता है
उभारता है रंगत कोरी हथेलियों की भी
हर चेहरे को गज़ब का श्रृंगार देता है