मिट्टी के ग़ुबार की मानिंद..18/40,    40 Poems in 40 Days's image
30K

मिट्टी के ग़ुबार की मानिंद..18/40, 40 Poems in 40 Days

मिटटी के गुबार के मानिंद ये ज़िन्दगी,                 कभी ज़मीन में समा गयी ,

कभी आसमां दिखा गयी

कभी डाल डाल कभी पात पात, 

कभी दूर दूर कभी साथ साथ।      

कभी छिटक के हाथ छुड़ा गयी,  

कभी लिपट के अपना बना गयी


 कभी सरे आम आँखों की किरक

Read More! Earn More! Learn More!