
मिटटी के गुबार के मानिंद ये ज़िन्दगी, कभी ज़मीन में समा गयी ,
कभी आसमां दिखा गयी
कभी डाल डाल कभी पात पात,
कभी दूर दूर कभी साथ साथ।
कभी छिटक के हाथ छुड़ा गयी,
कभी लिपट के अपना बना गयी
कभी सरे आम आँखों की किरक
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मिटटी के गुबार के मानिंद ये ज़िन्दगी, कभी ज़मीन में समा गयी ,
कभी आसमां दिखा गयी
कभी डाल डाल कभी पात पात,
कभी दूर दूर कभी साथ साथ।
कभी छिटक के हाथ छुड़ा गयी,
कभी लिपट के अपना बना गयी
कभी सरे आम आँखों की किरक