
लौट के आया गाँव मैं अपने
देवभूमि के अंचल में
प्रकृति का आशीष तो जैसे
रम सा गया मेरे कण कण में
जन्म हुआ जिस माटी में
माथे पे सजाया जब उसको
यादों के पटल झटके से खुले
दिखलाया सारा बचपन मुझको
वो माँ की हथेली सा आँगन
जिसमें गिर गिर कर चलना सीखा था
माँ की बाँहों सी वो संकरी गलियाँ
जिनमें अक्सर मैं खो जाता था
पगडण्डियाँ वो अंतहीन सी
जिनमें यूँ ही भटक जाता था मैं
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