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कंटीली पथरीली राह मेरी...

कंटीली पथरीली राह ये,

धूप की छांव,पांव के छाले

ये राह तुमने चली नहीं,

 तुम्हें इस राह का क्या पता


खुशियों की महफिल में भी 

दबे पांव दर्द की दस्तक

इस दर्द से तुम गुजरे नहीं,

तुम्हें इस दर्द का क्या पता


दर्द से यूं उलझते कभी,

अपनों से यूं बिछड़ते कभी

जो मंज़र

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