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कहाँ हैं वो जौहरी....34/40. 40 Poems in 40 Days

कहां हैं वो जौहरी जो 

ढूंढते थे हीरा पसीने में 

ये वाले तो मशगूल हैं 

कांच को हीरा जताने में


न सब्र है न फिक्र है,

न अब है वो पारखी नज़र

कांच के टुकड़े लगे हैं 

खुद की बोली लगाने में

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