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जब तुम तुम ना रह पाओ.24/40. 40 Poems in 40 Days

जब तुम तुम ना रह पाओ 

मैं भी खुद सी ना रह पाऊं 

जब चाहो तुम मुझसा होना

और मैं तुम जैसी बन जाऊं 

प्रेम की पावन परिणति हो ऐसी


आंख खुले तो तुमको पाऊं

पलकों में भी तुम्हें सजाऊं

बंद हों या खुले हों जब भी

तुम्हारे नयनों में मैं इतराऊं 

प्रेम की पावन परिणति हो ऐसी


मेरे नाम में तुम बस जाओ

तुम्हारे नाम में मैं रस जाऊं 

नाम पुकारे कोई तुम्हारा

मैं दौड़ी

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