उनकी राख कोई माथे पे अपने लगाए क्यों
उनके लहू से कोई अपनी मांग सजाए क्यों
तमाम उम्र छिपते फिरे वतन पे जांनिसारी से
कोई उन्हें अपने सीने से अब यहां लगाए क्यों
कलाई को उनकी कोई, राखी से सजाए क्यों
उनकी यादों को भी कोई सीने में छिपाए क्यों
चली है अब म
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