mazdoor aur ghin's image

मजदूरी पर कविता लिखने वालों

इतना मालूम है

कि कविता चंद पंक्तियां भर होती है,

जो तुमको शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दे शायद

लेकिन कविता रोटी नहीं होती, जिससे पेट की क्षुधा शांत हो पाए।


तुम्हारी कविता का क्या मायना है,

क्या तुमने कभी मजदूरों को एक नजर देखा तक है?

महसूस किया है जब जेठ की तपती गर्मी में

पानी के नाम पर

पसीने और खून की धार एक साथ मुंह में घुसेड़ी जाए?

घिन आ रही है?

सच बताना

क्या घिन आती है उस गलते हुए बेढ़ंगे जिस्म को देखकर?

उसी मज़दूर की मरी हुई रूह को देखकर?

गंध जो उसके जिस्म से निकल रही होती है

उससे तुमको अलबलाते हुए मैंने देखा है

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