![सज रही कुन्तल ( स्वामी विवेकानंद की स्मृति में )'s image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/post_pics/%40varun-singh-gautam/saja-rahi-kuntala-svami-vivekananda-ki-smrti-mem/IMG_20220116_2113.jpg)
जग उठी है पूर्व की किरणें
गिरी धो रही अँचल काया
क्षितिज कोने से देखो वसन्त
करता पदवन्दन तरुवर नरेन्द्र का
राह के कण्टकाकीर्ण छिप रही
पन्थ – पन्थ भी पन्थी के हो रहें साथ
नीली अंबर सज रही कुन्तल घन के
स्वामी यती बन आएँ भव निलय में
स्तुति स्वर लिप्त कहाँ , तम में ?
यह दिवस क्या अथ है या इति ?
चाह मेरी क्यों करुण छाँव में
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