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पूंजीपति

पूंजीपतियों के दीप जलता रहे

उसके लौ पर पूरे सभ्यताएँ, भावनाएँ, आत्माएँ

सब कोई अपने-अपने

हिस्से का रक्त-देह-मौत की चन्दाएँ

जिसे निरंकुश सरकार के

बाजारों में नीलामी की जा रही थी

जो इसके साक्ष्यी रहे उसे भी

अपने हिस्से का निर्मम हत्याएँ

भेंट करने पड़े

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