
रतनपुर नामक गांव में एक विधवा मां अपने बेटे के साथ घर में रहता था। बेटा अभी सात वर्ष का ही था, जिसका नाम सुशील था।
अपने बेटे को पढ़ाना मां को अत्यंत चिंता सता रही थी कि किस प्रकार से और कहां से अपने बेटे को पढ़ाएं, क्योंकि उनके पति के गुजर जाने के बाद घर का पुरा भार सुशील के मां के कंधों पर आ गयी था।
पहले सुशील की मां किसी तरह रुपयों का जुगाड़ करके सबसे पहले अपने बेटे का नाम स्थानीय विद्यालय में लिखवा दिया, जिससे कि उसके सुशील को उचित शिक्षा मिल सके।
अपने सुशील को नित्य-प्रतिदिन स्कूल छोड़ने और स्कूल से लाने भी जाती थी। जब स्कूल में फीस देने का समय आया। मां को अत्यंत चिंता हो रही थी कि अब स्कूल में किस प्रकार से फीस जमा करें।
अपने पड़ोसी के घर में गई लेकिन वहां उसे दुत्कार कर भगा दिया। कोई कर्जा देने को तैयार नहीं थे। सुशील के मां को इस बात की चिंता रहती थी कि फीस जमा नहीं होने के कारण सुशील को स्कूल से भगा ना दें।
दो-तीन दिन बाद सुशील की मां अपने बेटे के फीस जमा करने के लिए कई रईस के घर में बर्तन मांजना, खाना पकाना, कपड़ा धोना और कई प्रकार के बेगारी भी करती थी।
वहां से कुछ भी मिलता था, उसे अपने बेटे के फीस, स्कूल ड्रेस, किताब-कॉपी और भोजन पर खर्च करते थे।
कुछ रूपए जुगाड़ करके कुछेक महीनों के बाद स्कूल में फीस जमा करने के लिए गए स्कूल गए। फीस लेट जमा होने के कारण मां को शिक्षक के द्वारा ताने भी सुनने पड़े और उस पर शिक्षक ने और फाइन भी लगा दिए।
मां रोती-बिलखती शिक्षक के चरणों में गिरकर फाइन हटा देने के लिए रहम की भीख मांगने लगे। शुरुआत में शिक्षक अपने बात अड़े रहे लेकिन अंत में जाकर फीस में फाइन को हटा दिए।
रोती-बिलखती मां घर को आई और सोचने लगी कि मेरा बेटा कुछेक वर्ष में बड़ा आदमी बन जाएगा और मेरा दुख का साया खत्म हो जाएगा और कई सारी आशाएं अपने बेटे पर बैठा रखी थी। मां को ऐसा लग रहा था कि हमारा बेटा मेरा आंखों का तारा है, सबसे न्यारा और प्यारा है। एक दिन जरूर मेरे दुख का साया मिटा देगा इसी आशाओं को लेकर मां रोज सुशील को स्कूल पहुंचाने जाती और वहां से ले भी आती और तो और रईस के घर में ठांव-चोका करके फीस भी जमा करती थी।
इसी तरह दिन बीतते गए….।
एक दिन ऐसा आया उनका बेटा स्नातक पास करके एक सरकारी नौकरी लग गई। इसी बीच सुशील का शादी भी रईस घर के एक सुंदर लड़की से हो गई, जिसका नाम कंगन था।
मां प्रसन्नता में फूली नहीं समा रही थी, क्योंकि उनका प्रतीक्षारत सपना पूरा हो गया था। इसी दिन के लिए मां ने कितनो ही आंसू की बौछार बहाए होंगे, उनको ऐसा लग रहा था कि चलो अब हम लोगों का जिंदगी सुधर जाएगी।
इसी तरह हंसी खुशी में दिनोदिन बीतते गए। एक दिन ऐसा आया। सुशील का स्थानांतरण कहीं दूर प्रदेश के इलाका में हो गया। सुशील अपनी मां को घर पर छोड़कर प्रदेश रवाना को हुए। सुशील अपनी मां से यह वादा करके गए कि कुछेक दिन में मैं फिर लौट के आऊंगा और आपको भी वहां पर ले जाऊंगा और पहुंचते ही आपको एक कॉल भी करूंगा।
मां के चरण स्पर्श के बाद सुशील और उसकी पत्नी गाड़ी पर चढ़ गए….।
सुशील दूसरी प्रदेश जाने के बाद ना मैसेज और ना ही कॉल किया। सुशील के जाने के बाद उसकी मां का मन विचलित-सा था।
इनको यही बात की चिंता थी कैसे सुशील वहां पहुंचा होगा ?, कैसे यात्रा हुई होगी ?, यात्रा में कुछ दिक्कतें तो नहीं आई होगी ? आदि-आदि अनेक प्रश्न मां के हृदय से उठ रहे थे जो एक तरह से शूली