
नारी
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नीरसता में रस भर दे
ऐसा अद्भुत राग है नारी।
संघर्षों की कड़ी धूप में
ठण्डी ठण्डी छांव है नारी।
मर्यादा की हद में कैद
एक शक्ति है नारी।
जीवन के माधुर्य की
अभिव्यक्ति है नारी।
दीवारों के सत्कार में
बन जाती है घर की पुजारी।
नहीं तो बखूबी जानती है
महफिल लूटने की अदाकारी।
बगिया में महकती फुलवारी
पन्नों पर उकेरी गुलकारी।
नारी ईश्वर की सुरूप चित्रकारी
जैसे कुदरत ने हो छवि संवारी।
इन्साफ की देवी है नारी
कलम से लिखती तकदीर हमारी।
अमृत कलश उसके समीप
फिर भी विष पीती मीरा मतवारी।
बिखरती ह
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नीरसता में रस भर दे
ऐसा अद्भुत राग है नारी।
संघर्षों की कड़ी धूप में
ठण्डी ठण्डी छांव है नारी।
मर्यादा की हद में कैद
एक शक्ति है नारी।
जीवन के माधुर्य की
अभिव्यक्ति है नारी।
दीवारों के सत्कार में
बन जाती है घर की पुजारी।
नहीं तो बखूबी जानती है
महफिल लूटने की अदाकारी।
बगिया में महकती फुलवारी
पन्नों पर उकेरी गुलकारी।
नारी ईश्वर की सुरूप चित्रकारी
जैसे कुदरत ने हो छवि संवारी।
इन्साफ की देवी है नारी
कलम से लिखती तकदीर हमारी।
अमृत कलश उसके समीप
फिर भी विष पीती मीरा मतवारी।
बिखरती ह
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