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पतंग/पतंगा

क्या लिखूं की अब वक्त नहीं
ये दिन ये रात 
बस ऐसे ही बीत गई

मैं कही आज़ाद आकाश में
बिना डोर के बंधे 
एक खोए हुए पतंग की तरह
कही भटक कर गिर गया

मैं किस पतंग कि तरह 
जो एक बार गिर कर उड़ना भुल गया
या उस पतंग की तरह
जो जानते हुए भी शमा में जल गया 
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