आज बहुत दिनों बाद अपने शहर वापस आया,
अपने पुराने शहर को पूरी तरह परिवर्तित मैंने पाया।
स्टेशन से आते आते लगा के शहर कितना बदल गया है,
लगे देखने में ऊचा पर असल में नीचे फिसल गया है।
आकांक्षाओं को पूरा करने की होड़ में हम कितना आगे निकाल गए,
छोटे छोटे घर यू बड़ी बड़ी इमारतों में बदल गए।
आज के बच्चे हमारी तरह सड़कों पर नहीं खेलते है,
पढ़ाई का बोझ तो मात्र एक बहाना है दिन रात मोबाइल पर उंगलियां फेरते है।
सड़कें चौड़ी हो गई, बिजली अब २४ घंटे आती
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