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क्रांति
मेरी नज़र में एक औरत आम इंसान ही तो है
जिसके शरीर को आठ घंटे की नींद चाहिए,
अपने परिवार से दुख-दर्द में उम्मीद चाहिए,
दाना-पानी वक्त पे चाहिए,
पैसे अपने हक़ के चाहिए।
औरत नहीं बनी है गृहस्ती में फस जाने के लिए
वो बनी है घर में रौनक
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