लिखने का मेरा अंदाज़ नहीं, तुम्हारे अंदाज़ के समरूप,
या तो बदल दूं अपना ढंग, या महफ़िल को कर दूं अपने अनुरूप,
शामें रंगीन हों जाये, मेरी हर कविता की पंक्ति से,
कर दे सुबह भी जल्दी, चमक कर सूरज की किरन से,
प्रतिस्पर्धा नहीं, ये शौक हैं , सबसे हट के लिखने का,
कवियों की महफ़िल में , अलग वज़ूद से दिखने का,
संदेह जो मुझको होता कभी, खुद के लेखन को लेकर,
रिश्ता शब्द और दिल का बयां करती , तर्क अपने पक्ष में देकर,
यूं तो कविताओं का खङा अंबार तुम्हारे सामने,
सुनते हों तुम, रख कर दिमाग में कई पैमाने,
तुम्हारें हर पैमाने पर, 
या तो बदल दूं अपना ढंग, या महफ़िल को कर दूं अपने अनुरूप,
शामें रंगीन हों जाये, मेरी हर कविता की पंक्ति से,
कर दे सुबह भी जल्दी, चमक कर सूरज की किरन से,
प्रतिस्पर्धा नहीं, ये शौक हैं , सबसे हट के लिखने का,
कवियों की महफ़िल में , अलग वज़ूद से दिखने का,
संदेह जो मुझको होता कभी, खुद के लेखन को लेकर,
रिश्ता शब्द और दिल का बयां करती , तर्क अपने पक्ष में देकर,
यूं तो कविताओं का खङा अंबार तुम्हारे सामने,
सुनते हों तुम, रख कर दिमाग में कई पैमाने,
तुम्हारें हर पैमाने पर, 
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