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अम्बर सी ये नीली आंखें,

शबनम सी शर्मीली आंखें।

किसकी यादों में खोइं हैं,

किस गम से हैं गीली आंखें।।


खोज रहा हूं इन आंखों में,

में अपनी आंखों का सपना।

इन झीलों की गहराई में,

खोया है मेरा कुछ अपना।।


सपने गर अपने हो पाते,

सपने में ही हम खो जाते।

बहकी बहकी तेरी सांसों,

की सरगम के तार झुलाते।।


खोज रहा हूं इन सांसों में,

कोई सांस मेरी मिल जाए।

मेरे अंतर की तड़पन जो,

तेरी सांसों तक पहुंचाए।।


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