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बहुत जरूरी है
परिवर्तन
प्रकृति के प्रभाव में,
मनुष्य के स्वभाव में,
शान्ति में, अशान्ति मे,
हकीकत में, भ्रान्ति में,
असमंजस के कोहरे मे
सब कुछ धुंधला सा जाता है।
चाह कर भी इंसान खुद को रोक नहीं पाता है।।
हर्ष और वेदना से उपजी
संवेदना में भी बदलाव जरूरी है।
जी हां, यह अहसास की मजबूरी है।।
आजकल आभासी अनुभूतियों
का मौसम सा छा गया है।
अत: अब संवेदनाओं को भी
संशोधित करने का समय आ गया है।।
....
कहीं भी, किसी को भी, एक मौका दीजिए।
औ
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