मृगतृष्णा's image


मेरी बगिया, मेरा घर, मेरी मंजिल,

आते आते पास, न जाने कहां चली।

मेरे अरमानों की नैया, बिन साहिल,

जीवन नद में, विधि के हाथों गई छली।।


अनजाने में जिसे समझ बैठे अपना,

आंख खुली तो देखा, था कोरा सपना।

मणियों की माला पल भर में टूट गई,

कैसे भला याद रहता माला जपना।।

क्या सचमुच अभिशाप स्वयं बन जाएगी,

पाई थी जो शाख घूमकर गली गली।

मेरे अरमानों की नैया बिन साहिल,

जीवन नद में विधि के हाथों गई छली।।


मेरी बगिया रंगों का आधार बने,

धरती बने बहार, लता हर प्यार बने।

इसी आस में सींच सींच कर पाला था,

इक दिन मेरे सपनो का संसार बने।।

लेकिन प्रकृति न खिलता देख सकी उसको,

उजड़ गई हर शाख, मिट गई कली कली।

मेरे

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