
ज़िन्दगी को पुकार कर देखा,
उम्मीदों को दुलार कर देखा।
जाने खुशियां कहां विलीन हुईं,
मन का हर कोना बुहार कर देखा।।
नींव मजबूत थी डाली हमने,
वास्तु-खामी भी निकाली हमने।
पर न अनुभूति हुई घर जैसी,
घर को फिर फिर संवार कर देखा।।
खुली थीं खिड़कियां गली की तरफ,
बंद आंगन में सभी दरवाजे।
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