खुशियों की खोज's image
411K

खुशियों की खोज

ज़िन्दगी को पुकार कर देखा,

उम्मीदों को दुलार कर देखा।

जाने खुशियां कहां विलीन हुईं,

मन का हर कोना बुहार कर देखा।।


नींव मजबूत थी डाली हमने,

वास्तु-खामी भी निकाली हमने।

पर न अनुभूति हुई घर जैसी,

घर को फिर फिर संवार कर देखा।।


खुली थीं खिड़कियां गली की तरफ,

बंद आंगन में सभी दरवाजे।

<
Read More! Earn More! Learn More!