
क्यों सहम जाता है ये मन,कड़कती बरसात में।
क्यों दहल जाता है ये मन, इक अकेली रात में।।
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कौन जाने कब तलक, होगी सहर इस रात की।
आज कुछ ज्यादा ही, बहके हैं निरे जज़्बात में।।
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खुद कमाया सुख, कभी खैरात में मांगा नहीं।
इसलिए कोई न दे, ताना मुझे हर बात में।।
प्यार से जो भी मिला, बेखोफ उसके हो लिए।
फर्क ही खोजा नही, खुद में, कभी हालात में।।
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आज भी जैसा, जहां हूं, हूं स्वयं
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