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आत्मघात . हल नहीं व्यथा का !

हर आत्मवंचित आत्मक्रंदन की मिले सीमा जहां।

हर आत्मकेंद्रित आत्महत्या की जड़ें होती वहां।।


इंसान का मस्तिष्क, निष्क्रिय हो विविध भ्रम पालता है।

कोई न कोई घाव, जीवन का हृदय को सालता है।।


मिलता नहीं सहयोग, स्वजनों से सहज, भरपूर सा।

दिखती न कोई राह, हर बंधन लगे मजबूर सा।।


बचता नहीं विकल्प जब कुछ, समस्या से पार का।

तो हार से अपनी व्यथित मन, सोचता उद्धार का।।


बुनता स्वयं ही जाल,अपने अन्त के आरम्भ का।

ओढ़े हुए नकाब कोरे मान, गौरव, दंभ का।।


ह़ोगा कठिन मा

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