तेजपाल सिंह ‘तेज’ :: ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ तो ‘वन नेशन वन एजुकेशन’ क्यों नहीं?
‘वन नेशन वन इलेक्शन’ तो ‘वन नेशन वन एजुकेशन’ क्यों नहीं?
-तेजपाल सिंह ‘तेज’
जब किसी का हक मारा जाता है, किसी की परंपरा तोड़ी जाती है, किसी को आपने हरा दिया है तो क्या वो चुप बैठेगा? नहीं...वो बात अलग है कि वो किसी वजह से चुप रह जाए। यही राजनीति है। अनुसूचित जाति आरक्षण के मामले में सभी फैसले न्यायालय से आए हैं। लेकिन यह संभव नहीं है कि कोई लोकसभा या विधानसभा में अनुसूचित जाति के खिलाफ फैसला सुनाए। अगर आप लोकसभा या विधानसभा में अनुसूचित जाति के खिलाफ फैसला सुनाते हैं, अगर आप डॉ. अंबेडकर के खिलाफ फैसला सुनाते हैं, अगर आप तथाकथित बाल्मीकि के खिलाफ फैसला सुनाते हैं, अगर आप बुद्ध के खिलाफ फैसला सुनाते हैं, तो अनुसूचित जाति वर्ग अब इतना मजबूत हो गया है कि वह बहुत तेजी से प्रतिक्रिया करता है।
यहाँ सुप्रीम कोर्ट द्वारा सवाल उठा दिया गया है कि जो लोग काम करना शुरू कर चुके हैं, आप उनको धमकाते हैं कि आपको क्रीमी लेयर के जाल में फंसा दिया जाएगा। तो फिर सबको क्रीमी लेयर के जाल में फांस देना चाहिए….क्यों नहीं? जैसा कि OBC के मामले में सरकार द्वारा किया गया है किंतु यह व्यवस्था EWS वर्ग के बारे में क्यों नहीं की गई? और यह भी कि यदि ओबीसी के बच्चे शिक्षित नहीं होंगे। क्योंकि उनके पास शिक्षा के लिए पैसे नहीं हैं, वे किसान हैं। तो वो आरक्षण का लाभ उठाने के लिए वांछित अहर्ता पूरी नहीं करते तो उन्हें 27% का लाभ भी नहीं ले पायेंगे। यही पैमाना अनुसूचित / अनुसूचित जनजाति वर्गे के मामले में भी लागू होता है। ऐसे में इस वर्ग में आने वाली जातियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनके मामले में उपवर्गीकरण का सवाल उठाना किस प्रकार जायज ठहराया जा सकता है। यूँ भी कह सकते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के 1 अगस्त के फरमान ने खासकर चमार और वाल्मीकि के बीच दरार डालने का काम किया है। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट का ये सुझाव परदे के पीछे का एक राजनीतिक खेल लगता है। वह इसलिए कि इस प्रकार की सभी विवादित निर्णय राजनीतिक दल नहीं लेते। अनुसूचित जातियों के मामले में सभी निर्णय न्यायालय द्वारा लिए जाते हैं। सीधे-सीधे लोकसभा या विधानसभा में कोई फैसलाढाई नहीं लिया जाता। हाँ! अब सुप्रीम कोर्ट ने पूरा का पूरा मामला लोकसभा तथा विधान सभाओं के पाले में डाल दिया है।
आम तौर पर यह सवाल आमतौर पर उठाया जाता है कि नौकरियों में आरक्षण का लाभ मुख्यत:जाटव और यादव द्वारा हड़प लिया गया है। लेकिन यह कोई नहीं देखता कि इन वर्गों के लोगों में शिक्षा के प्रति अधिकाधिक आकर्षण पैदा हुआ है… इन वर्गों की अन्य जातियों में नहीं। ऐसे में यदि ईमानदारी से देखा जाये तो कम से कम यह तो कहा ही जा सकता है कि पिछड़े वर्ग का हक अधिकार यादवों और एससी-एसटी वर्ग का हक अधिकार जाटवों की वजह से सुरक्षित है। क्योंकि ये दोनों जातियां अपने अधिकारों को लेकर सैकड़ों वर्षोंसे जागरूक और संघर्षशील रही हैं। लगता है कि यही एक कारण है कि सुप्रीम कोर्ट के फरमान को पूरे ‘पिछड़े समाज’ को ‘यादव समाज’ से लड़ाने और एससी-एसटी वर्ग की अन्य जातियों को ‘जाटव समाज’ से लड़ाने के षडयंत्र के रूप में देखा जा रहा है। अनुसूचित / अनुसूचित जनजाति वर्गे के बीच दरार डालने का प्रमाण भी अब हरियाणा से हमारे सामने आ गया है। जिसका खुलासा न्यूजवीक फाउंडेशन ने अपनी 20.10. 2024 एक खबर में किया है
बजरिए न्यूज़वीक फाउंडेशन यूट्यूब चैनल हरियाणा की बीजेपी सरकार ने आरक्षण के बंटवारे को मंजूरी दे दी है. बीजेपी सरकार ने कैबिनेट की पहली बैठक में ही अपने चुनावी वादों को पूरा कर दिया है क्योंकि दलितों को बांटकर चुनाव जीतने वाली बीजेपी का एजेंडा पूरा हो रहा है. हरियाणा की नायब सिंह सैनी सरकार ने दूसरे कार्यकाल के लिए सरकार बनते ही पहली कैबिनेट बैठक की और इस बैठक में हरियाणा में दलितों को आपस में बांटने के फैसले पर मुहर लगा दी. हरियाणा सरकार ने अनुसूचित जाति को आरक्षण दो हिस्सों में बांटा है। सुप्रीम कोर्ट की 8वीं सुनवाई में आरक्षण को मंजूरी दी गई। हरियाणा में अज्ञात जाति को कुल 20% आरक्षण मिलता है। अब इस 20% को 10-10 भागों में बांट दिया गया है। यानि 10% अनुसूचित जाति में वंचित वर्ग को दिया जाएगा, जिसे DSC कहते हैं। और 10% OSC यानि अन्य अनुसूचित जाति को दिया जाएगा।
यहाँ यह भी जानना जरूरी है कि हरियाणा की डीएससी और ओएससी की सूची में कौन-कौन सी जातियां शामिल हैं। अन्य अनुसूचित जाति यानी ओएससी (Other Scheduled Casts) में चमार, रैगर, रामदासी, रविदासी, बलाई, बटाई, मोची और जाटव जाति को शामिल किया गया है। डीएससी यानी वंचित अनुसूचित जाति में वाल्मीकि, धानक, ओढ़, बाजीगर, माजवी और माजवी सिख समेत 36 अन्य जातियों को भी इस सूची में शामिल किया गया है। यानी आरक्षण को जातियों में आधा-आधा बांट दिया गया है। नायब सिंह सैनी ने चुनाव से ठीक पहले वादा किया था कि अगर उनकी सरकार बनी तो वो आरक्षण बांटेंगे। और अब उन्होंने उस चुनावी वादे पर मुहर लगा दी है।
हालांकि इस फैसले को दलितों में आपस में बंटवारे और आरक्षण पर हमले के तौर पर देखा जा रहा है। बसपा सुप्रीमो बहन कुमारी मायावती ने इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताते हुए इसका विरोध किया है। बहनजी ने ट्विटर पर लिखा - हरियाणा की नई भाजपा सरकार का आरक्षण के कोटे के भीतर कोटे की नई व्यवस्था लागू करने का फैसला दलितों में फिर से बंटवारा करने और उन्हें आपस में लड़ाए रखने की साजिश है। यह दलित विरोध ही नहीं, आरक्षण का भी प्रबल विरोध है। हरियाणा सरकार को ऐसा करने से रोकने के लिए भाजपा के नेताओं का आगे न आना भी सिद्ध करता है कि कांग्रेस की तरह भाजपा भी पहले आरक्षण को खत्म करने, उसे अप्रभावी बनाने तथा अंत में समाप्त करने के षडयंत्र में लगी हुई है। जिसका प्रबल विरोध हो रहा है।
हरियाणा में बीजेपी का फार्मूला काम कर गया। हरियाणा में तीसरी बार बीजेपी की सरकार बनी। और अब महाराष्ट्र में भी यही फार्मूला लागू हो रहा है। महाराष्ट्र में भी आरक्षण का ऐलान हो चुका है, क्योंकि अगले महीने वहां भी चुनाव होने वाले हैं। चुनावी नफा-नुकसान को देखते हुए बीजेपी आरक्षण में बंटवारे के एजेंडे पर लंबे समय से काम कर रही है। लोकसभा चुनाव में माला और मादिगा समुदाय के बीच बहस में खुद पीएम मोदी ने आग उगलते हुए ऐलान किया था कि अगर वे सत्ता में आए तो आरक्षण में बंटवारा जरूर करेंगे।
एक तरफ तो भाजपा दलित वर्ग को बांटने की ओर राजनीति की नीति पर आगे बढ़ रही हैं। दूसरी तरफ भाजपा ने दलितों को क्रीमी लेयर पर लॉलीपॉप देने की भी घोषणा कर रही है। पिछले दिनों मोदी सरकार ने कहा था कि आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू नहीं होगी, लेकिन सरकार ने चुपचाप आरक्षण में वर्गीकरण को भाजपा राज्य में लागू भी कर दिया। खेद की बात तो यह है कि दलित वर्ग की बहुत सी जातियां शिक्षा के महत्त्व को न समझकर अपने ही वर्ग की कुछ जातियों के खिलाफ खड़े होकर अपनी जीत मान रही हैं। वे नहीं समझती कि भाजपा दलित जातियों को दो फाड़ करके “ बांटो और राज करो” की चाल चल रही है। यहाँ यह भी समझना होगा कि भाजपा/ एनडीए सरकार बाबा साहब अंबेडकर के बनाए संविधान के खिलाफ है। बाबा साहब अंबेडकर के संविधान के अनुसार एससी और एसटीके आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू नहीं होती है। एससी और एसटीके आरक्षण में क्रीमी लेयर भी लागू नहीं होती है।
यानी बीजेपी सरकार ने दोनों हाथों में मिठाई रखी, क्रीमी लेयर पर बयान देकर दलितों का गुस्सा शांत किया, उपवर्गीकरण लागू किया और कुछ दलित जातियों का वोट भी हासिल किया। हरियाणा में कोटा के भीतर कोटा लागू होने के बाद कुछ जातियां इसका खुले दिल से स्वागत कर रही हैं। सोशल मीडिया पर दिवाली मनाने के वीडियो शेयर किए जा रहे हैं। इन जातियों को लगता है कि अब उनकी जाति के सभी लोगों को अच्छी नौकरी मिलेगी और उनकी जाति के लोग बड़े अधिकारी बन सकेंगे। लेकिन क्या ऐसा सोचना सही है? आंकड़े क्या कहते हैं? हरियाणा की अनुमानित जनसंख्या करीब 3 करोड़ है। लेकिन हरियाणा में सरकारी कर्मचारियों की संख्या सिर्फ 2,85,000 है। यानी करीब 100 लोगों पर एक व्यक्ति को नौकरी मिलती है। अगर इस संख्या के हिसाब से अनुमान लगाया जाए तो कुल 2,85,000 नौकरियां, उसमें से 10% यानी 28