
तेजपाल सिंह ‘तेज’ : न्यायपालिका में दलित जजों के साथ जातीय भेदभाव और उत्पीड़न
न्यायपालिका में दलित जजों के साथ जातीय भेदभाव और उत्पीड़न
- तेजपाल सिंह ‘तेज’
भारत में दलित समुदाय के लोगों के साथ उत्पीड़न और भेदभाव एक गंभीर और जटिल मुद्दा है, जो सदियों से चला आ रहा है। दलित समुदाय के लोगोंसामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आधार पर विभिन्न प्रकार से शोषण और उत्पीड़न किया जाता है, जिससे उनके मानवाधिकारों का हनन होता है। दलित उत्पीड़न की घटनाएं न केवल व्यक्तिगत स्तर पर होती हैं, बल्कि सामूहिक स्तर पर भी होती हैं, जो पूरे समुदाय को प्रभावित करती हैं। प्रस्तुत लेख में, दलित उत्पीड़न की विभिन्न घटनाओं पर न केवल चर्चा की जाएगी, अपितु उनके कारणों, परिणामों और समाधानों पर विचार भी किया जाएगा। दलित समुदाय के लोगों के साथ होने वाले उत्पीड़न और भेदभाव के विभिन्न रूपों का विश्लेषण तो होगा ही, साथ ही उनके खिलाफ लड़ने के लिए आवश्यक कदमों पर भी चर्चा की जाएगी। यहाँ केवल न्यायपालिका में दलित जजों के साथ होने वाले उत्पीड़न प्रस्तुत किया जा रहा है।
दलित अत्याचार: एक गंभीर और जटिल मुद्दा : दलित अत्याचार भारत में एक गंभीर और जटिल मुद्दा है, जिसमें विभिन्न रूपों में दलित समुदायों के खिलाफ भेदभाव और हिंसा शामिल है। दलित समुदाय, जिन्हें पहले "अछूत" कहा जाता था, भारतीय समाज में सबसे अधिक उत्पीड़ित और शोषित वर्गों में से एक हैं। इस निबंध में, हम दलित अत्याचार के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे और इसके कारणों, परिणामों और समाधानों पर विचार करेंगे।
दलित अत्याचार के रूप : दलित अत्याचार के विभिन्न रूप हो सकते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख रूप हैं:
1) सामाजिक भेदभाव: दलित समुदायों को अक्सर सामाजिक रूप से अलग-थलग किया जाता है और उन्हें समान अवसरों से वंचित रखा जाता है। उन्हें मंदिरों में प्रवेश करने, सार्वजनिक जल स्रोतों का उपयोग करने और अन्य सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने से रोका जाता है।
2) आर्थिक शोषण: दलित समुदायों को अक्सर आर्थिक रूप से शोषित किया जाता है और उन्हें कम मजदूरी पर काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। उन्हें भूमि और अन्य संसाधनों से वंचित रखा जाता है और उन्हें अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
3) हिंसा और शारीरिक उत्पीड़न: दलित समुदायों के खिलाफ हिंसा और शारीरिक उत्पीड़न के मामले आम हैं। उन्हें मारा-पीटा जाता है, उनके घरों को तोड़ा जाता है और उनकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाता है।
दलित अत्याचार के कारण : दलित अत्याचार के कारण जटिल हैं और इसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारक शामिल हैं। कुछ प्रमुख कारण हैं:
1) जाति व्यवस्था: भारत में जाति व्यवस्था एक प्रमुख कारक है जो दलित अत्याचार को बढ़ावा देती है। जाति व्यवस्था में दलित समुदायों को सबसे निचले स्थान पर रखा जाता है और उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से शोषित किया जाता है।
2) सामाजिक और आर्थिक असमानता: भारत में सामाजिक और आर्थिक असमानता एक प्रमुख कारक है जो दलित अत्याचार को बढ़ावा देती है। दलित समुदायों को समान अवसरों से वंचित रखा जाता है और उन्हें आर्थिक रूप से शोषित किया जाता है।
3) राजनीतिक उदासीनता: राजनीतिक उदासीनता भी एक प्रमुख कारक है जो दलित अत्याचार को बढ़ावा देती है। राजनीतिक दल अक्सर दलित समुदायों के मुद्दों को नजरअंदाज करते हैं और उनके अधिकारों की रक्षा नहीं करते हैं।
दलित अत्याचार के परिणाम : दलित अत्याचार के परिणाम गंभीर हैं और उनमे से कुछ इस प्रकार हैं:
1) सामाजिक अलगाव: दलित समुदायों को सामाजिक रूप से अलग-थलग किया जाता है और उन्हें समान अवसरों से वंचित रखा जाता है।
2) आर्थिक पिछड़ापन: दलित समुदायों को आर्थिक रूप से शोषित किया जाता है और उन्हें कम मजदूरी पर काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।
3) मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य: दलित अत्याचार के कारण दलित समुदायों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
दलित अत्याचार एक गंभीर और जटिल मुद्दा है, जिसमें विभिन्न रूपों में दलित समुदायों के खिलाफ भेदभाव और हिंसा शामिल है। इसके समाधान के लिए, सरकार और समाज दोनों को मिलकर काम करना होगा और दलित समुदायों के लिए समान अवसर प्रदान करने और उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करना चाहिए।
न्यायपालिका में जातिवाद :
भारत की न्यायपालिका में दलित जजों के साथ जातीय भेदभाव और उत्पीड़न एक गंभीर मुद्दा है, जिसके कई उदाहरण सामने आए हैं। जिनमें से ताजा उदाहरण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। आपने आज तक इस तरह के केस के बारे में नहीं सुना होगा। जब कोई हाई कोर्ट अपनी ही बेंच के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाए कि हमारी बेंच ने ठीक इंसाफ नहीं किया है। समझिए कि हमारे देश में जातिवाद कैसा काम करता है। खबर ये है कि उपेक्षित समुदाय वाला जज बना तो ऊंचे समुदाय से बर्दाश्त नहीं हुआ। यह कहना है सुप्रीम कोर्ट जस्टिस सूर्यकांत का। तो जो लोग कहते हैं कि देश में जातिवाद ख़त्म हो गया है या टीवी चैनलों के कुछ ऐसे एंकर का जिन्हें सामाजिक न्याय के विषय में कुछ अता- पता नहीं है। ये कहानी पंजाब के बरनाला में एक मोची परिवार में पैदा होने वाले एक बच्चे की है। यह एक ऐसा मामला है कि ये कहानी मीडिया जगत की सुर्खी नहीं बन पाई जस्टिस सूर्यकांत ने कहा प्रेम कुमार के पिता मोची थे, फटे झूठे सालते थे और माता भी मजदूरी करती थी। उपेक्षित समुदाय से होने के बाद वजूद वो मेहनत करके जज बने।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के एक जिला और सत्र अदालत के न्यायिक अधिकारी को इसलिए बर्खास्त कर दिया गया क्योंकि वे अनुसूचित जाति से संबंधित यानी एक मोची के बेटे हैं। इसके बाद ये विवाद हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। अब सर्वोच्च अदालत ने अधिकारी प्रेम कुमार की बहाली का आदेश दिया है। स्मरण रहे कि अदालत ने फैसला सुनाते हुए किस तरह की चुभने वाली बातें कहीं। न्यायपालिका में जातिगत भेदभाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है। ये पूरा मामला एक वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी से जुड़ा है। अधिकारी को एक मोची का बेटा होने की वजह से निशाना बनाया गया। साथ ही, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के प्रशासनिक विभाग ने उन्हें बर्खास्त तक कर दिया। इसके बाद ये मामला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट पहुंचा, जहां उच्च न्यायालय ने अधिकारी को नौकरी में दोबारा से बहाल करने का आदेश दिया। किन्तु मामला यहीं नहीं थमा। सुप्रीम कोर्ट तक इसके खिलाफ अर्ज लगी। अब सर्वोच्च अदालत ने भी हाईकोर्ट के फैसले को बहाल कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के जज सूर्यकांत के सामने ये मामला था। वे खुद भी पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट से आते हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि पंजाब की न्यायपालिका में चल रही इस जातिगत समस्या से बखूबी वाकिफ हैं। और चूंकि अधिकारी अनुसूचित/ एक पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखता है इसलिए उसे निशाना बनाया गया। उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि आखिर ये सब कब तक चलेगा। जस्टिस सूर्यकांत के अलावा जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह इस मामले को सुन रहे थे। ये भी जान लें कि किस तरह एक जिला अदालत का विवाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
जिस अधिकारी को लेकर पूरा विवाद रहा – उनका नाम प्रेम कुमार है। 2014 में उनकी पंजाब में अतिरिक्त जिला और सत्र जज के तौर पर बहाली हुई। प्रेम कुमार के बारे में उनके वरिष्ठ जजों की राय पहले तो काफी अच्छी रही। पर फिर बदलती चली गई। उनका मूल्यांकन काफी उतार-चढ़ाव से भरा रहा। आखिरकार, अप्रैल 2022 में प्रेम कुमार की कार्यशैली को आधार बनाते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के प्रशासनिक विभाग ने उनको बर्खास्त कर दिया। अपनी गरिमा की हिफाजत में कुमार ने इस बर्खास्तगी को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी। जनवरी 2025 में हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को स्वीकार किया और प्रशासनिक विभाग के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें उन्हें बर्खास्त किया गया था। हाईकोर्ट के प्रशासनिक विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अर्जी लगाई, जिस पर अब फैसला आया है।
इस मामले की पूरी कुछ इस प्रकार है - सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जाति आधारित भेदभाव को लेकर प्रतिक्रिया व्यक्त की। अदालत ने एक दलित समुदाय से आने वाले लोकतांत्रिक अधिकारी की बर्खास्तगी के मामले की सुनवाई करते हुए कहा, "क्या यह सहन नहीं हुआ कि एक उपेक्षित वर्ग का युवा, कम उम्र में जज साहब उच्च वर्ग के बीच आ खड़े हुए?" यह टिप्पणी जस्टिस सूर्यकांत वाली बेंच ने की, जो पंजाब के अवशेष सेशन जज प्रेम कुमार की फास्टैग से जुड़े मामले की सुनवाई कर रही थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह मामला केवल आचरण से यात्रा का नहीं, बल्कि जातिगत पूर्वग्रहों से प्रेरित प्रतीत होता है। सुनवाई के दौरान वयोवृद्ध वकील ने प्रेम कुमार के विपक्ष में पेश की गई दलीलों को सुनने के बाद न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा, "अगर आप अदालत में हैं तो मैं यह बात खुली अदालत में कह रहा हूं कि प्रेम कुमार जातिगत भेदभाव का शिकार हैं। उनका आचरण हमेशा अनुकरणीय रहा है।” वकील द्वारा हस्तक्षेप करने पर जस्टिस सूर्यकांत ने साफ किया कि जातिगत भेदभाव जैसे मामलों को अब बंद नहीं किया जाएगा। उन्होंने पूछा, “ऐसे हालात कब तक रहेंगे?” - यह प्रश्न केवल एक पर नहीं, बल्कि पूरे ऐतिहासिक तंत्र के लिए एक चेतावनी है। ज्ञात हो कि प्रेम कुमार ने 2014 में अमृतसर जिला अदालत में जेल सत्र न्यायाधीश के रूप में पदस्थापित किया था।
संदिग्ध निष्ठा के नाम पर बर्खास्त पंजाब का जज प्रेम कुमार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा बहाल कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट बोला- उपेक्षित समुदाय वाला जज बना तो ऊंचे समुदाय से बर्दाश्त नहीं हुआ। न्यायपालिका में जजों से जातीय पक्षपात के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बेहद सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा- यह जज हालात और जातिगत पक्षपात का शिकार हुआ। सब पहले से फिक्स था। ऊंचे समुदाय के लोग बर्दाश्त ही नहीं कर पा रहे थे कि उपेक्षित समुदाय के व्यक्ति का लड़का (मोची) कम उम्र में जज बन गया और उनके बीच आ गया। जस्टिस सूर्यकांत ने पंजाब के एडिशनल सेशन जज (प्रेम कुमार) की बर्खास्तगी के मामले में सोमवार को ओपन कोर्ट में सुनवाई कर रहे थे। उन्होंने कहा- जज की बर्खास्तगी गलत थी, उनको बहाल किया जाए। साथ ही उनकी सेवा के पदोन्नति व अन्य सभी लाभ दिए जाएं। विदित हो कि जज प्रेम कुमार को दुष्कर्म के मामले में आरोपी की शिकायत पर ‘संदिग्ध निष्ठा’ का दोषी मानते हुए बर्खास्त कर दिया गया था।
क्या था पूरा मामला...
दरअसल, बरनाला के प्रेम कुमार 26 अप्रैल 2014 को एडिशनल जिला एवं सेशन जज बने और अमृतसर जिला कोर्ट में नियुक्त हुए। इस दौरान दुष्कर्म के आरोपी ने हाईकोर्ट में शिकायत दी कि प्रेम कुमार ने वकालत करते वक्त दुष्कर्म पीड़िता की ओर से समझौते के लिए संपर्क किया और पीड़िता को 1.50 लाख रुपए दिलवाए। हाईकोर्ट ने विजिलेंस जांच शुरू की। इसके आधार पर जज की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में ‘ईमानदारी संदिग्ध’ दर्ज कर दी गई। फिर 2022 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की फुल बेंच ने 2015 की इस रिपोर्ट और शिकायत के आधार पर प्रेम कुमार को बर्खास्त कर दिया गया। प्रेम कुमार ने अपनी बर्खास्तगी को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी। जनवरी 2025 में सुबूतों की कमी का हवाला देते हुए उनकी बर्खास्तगी रद्द कर दी गई। हाईकोर्ट ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
क्या है संदिग्ध निष्ठा, जिस पर सवाल उठे : किसी जज के संदर्भ में संदिग्ध निष्ठा एक बहुत गंभीर आरोप होता है, क्योंकि न्यायपालिका की मूल शक्ति ही जनता के भरोसे, निष्पक्षता और ईमानदारी पर टिकी होती है। अगर किसी जज की निष्ठा संदिग्ध मानी जाती है, तो इसका मतलब है कि उसके निर्णय, व्यवहार या व्यक्तिगत संपर्कों में कोई ऐसा संकेत पाया गया है जो न्यायिक निष्पक्षता पर सवाल उठाता है।
बकाया और वरिष्ठता भी मिलेगी : हाईकोर्ट के प्रशासनिक विभाग की याचिका को खारिज करते हुए जस्टिस सूर्यकांत और ज