
तेजपाल सिंह ‘तेज’ : मीडिया पर सत्ता और पूंजीपतियों का शिकंजा एक अलोकतांत्रिक कदम
मीडिया पर सत्ता और पूंजीपतियों का शिकंजा एक अलोकतांत्रिक कदम
-तेजपाल सिंह ‘तेज’
आगे बढ़ने से पहले मैं यह जरूरी मानता हूँ कि पहले हम मीडिया तथा न्यायपालिका की उपयोगिता पर बिंदुवार एक नजर डाल लेते हैं। जान लें कि मीडिया और न्यायपालिका दोनों ही समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
मीडिया की उपयोगिता:
1. जानकारी का प्रसार: मीडिया लोगों को समाचार, जानकारी और ज्ञान प्रदान करता है।
2. निगरानी और आलोचना: मीडिया सरकार और अन्य शक्तिशाली संस्थाओं की निगरानी और आलोचना करता है।
3. जनमत निर्माण: मीडिया जनमत निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
न्यायपालिका की उपयोगिता:
1. न्याय प्रदान करना: न्यायपालिका लोगों को न्याय प्रदान करती है और उनके अधिकारों की रक्षा करती है।
2. कानून का पालन: न्यायपालिका कानून का पालन सुनिश्चित करती है और अपराधियों को सजा दिलाती है।
3. संवैधानिक संरक्षण: न्यायपालिका संविधान की रक्षा करती है और सरकार की शक्तियों को नियंत्रित करती है।
उल्लेखनीय है कि दोनों संस्थाएं समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और एक दूसरे के साथ मिलकर काम करती हैं ताकि समाज में न्याय, समानता और स्वतंत्रता का संरक्षण किया जा सके।
लोकहित इंडिया के हवाले से, जस्टिस वर्मा के घर से करोड़ों का नोट यानी कैश मिला है। उनके बारे में दो अहम खबरें सामने आई हैं। यानि एक तरफ उनका कच्चा चिट्ठा खुल रहा है। और दूसरी तरफ हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस डॉ. एस मुरलीधर, जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र का कच्चा चिट्ठा खोल दिया है। और साफ शब्दों में बता दिया है कि दुनिया में भारत के लोकतंत्र की स्थिति कहां पहुंच रही है। और वो कौन से पहलू हैं जिनकी वजह से भारत का लोकतंत्र यानि लोकतंत्र की जननी, हर दिन तार-तार हो रही है। और भारतीय लोकतंत्र, जिस सबसे बड़ी बीमारी से ग्रसित है, उस बीमारी को उन्होंने ही ओढ़ा है। अभी एक कार्यक्रम में डॉ. एस. मुरलीधर ने जो कहा, इंटरनेट शटडाउन के बारे में, पत्रकारों की सुरक्षा के बारे में, खास तौर पर मीडिया और न्यायपालिका को एक दूसरे की जरूरत कैसे है, एक दूसरे को स्वतंत्र कैसे रखना है।
जस्टिस एस मुरलीधर वही हैं जिन्होंने 2020 के दिल्ली दंगों के दौरान आधी रात को ऐसा फैसला सुनाया, ऐसा आदेश दिया कि सत्ता में बैठे लोग हिल गए थे। और उसके बाद जस्टिस एस मुरलीधर के साथ जो हुआ, वो इतिहास में दर्ज है। आज की तारीख में अगर आपको भारतीय लोकतंत्र की अहम बीमारियों को समझना होगा। जस्टिस एस मुरलीधर अब सुप्रीम कोर्ट में सीनियर सिटीजन के रूप में हैं। लेकिन बहुत कम शब्दों में उन्होंने बहुत कुछ कह दिया है। हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एस मुरलीधर भी यही बात कह रहे हैं कि किस तरह से मीडिया के एक बड़े हिस्से पर धन्ना सेठों का कब्जा है और धन्ना सेठ मीडिया को व्यापार की तरह चला रहे हैं। बदले में देश और देश के लोकतंत्र के साथ जो भी हो रहा है। ज्ञात हो कि दिल्ली दंगों के दौरान जैसे ही दिल्ली पुलिस ने अपनी निष्क्रियता दिखाई, जस्टिस एस मुरलीधर ने कड़ा रुख अपनाया। और आप जानते हैं कि देश की राजधानी तीन दिन तक जलती रही। यह बिना किसी लापरवाही के, बिना किसी साजिश के, बिना किसी षड्यंत्र के संभव नहीं है। फिर क्या हुआ? जैसे ही जस्टिस एस मुरलीधर ने जिम्मेदार लोगों की बात सुनी, मामला ऊपर तक पहुंच गया। और बड़े लोगों की कुर्सियाँ हिलने लगीं। इस फ़ैसले के तुरंत बाद जस्टिस एस मुरलीधर का तबादला पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में कर दिया गया।
सबसे पहले दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा, जिनके घर से करोड़ों के जले हुए नोट पकड़े गए। इस मामले में अब तक कई मोड़ आ चुके हैं। खबर यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने उनका तबादला इलाहाबाद हाई कोर्ट कर दिया है। दूसरी ओर, इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकीलों का कहना है कि जस्टिस वर्मा जज बनने के लायक नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सीजीआई संजीव खन्ना को यह प्रस्ताव भेजा गया है। एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने कहा कि यशवंत वर्मा जज बनने के लायक नहीं हैं। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट या दिल्ली हाईकोर्ट में जो फैसले दिए हैं, उनकी भी दोबारा जांच होनी चाहिए। यानी इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के वकीलों का कहना है कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ जांच होनी चाहिए। उन्हें पद से हटाया जाना चाहिए। वह जज बनने के लायक नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जाँच समिति ने भी जस्टिस वर्मा को दोषी करार दिया है। जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिश वर्मा को स्वेच्छा से त्यागपत्र देने को कहा है। वरना उन्हें न्याययिक प्रक्रिया से गजरना होगा।
न्यायालयों के भ्रष्टाचार के लिए शासन भी जिम्मेदार
आखिर जस्टिस एस मुरलीधर जैसे ईमानदार और दृढ़ निश्चयी जज को सुप्रीम कोर्ट में जगह क्यों नहीं मिली? सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस प्रसाद भूषण ने खुलेआम कहा था कि अदालतों में जजों के साथ तीन तरह से धोखा होता है। पहला - नियुक्ति के दौरान यह तय किया जाता है कि कौन सा जज सरकार के काम के लिए योग्य है और कौन नहीं। जो काम के लायक नहीं है उसे कुर्सी नहीं दी जाती। दूसरे - जजों को लालच दिया जाता है। रिटायरमेंट के बाद बड़े पद का लालच दिया जाता है। पैसों का लालच। करोड़ों का लालच। रिश्तेदारों को अलग-अलग तरह से फ़ायदा पहुँचाने का लालच। उदाहरण के लिए, वे अपने बेटे या बेटी को कहीं न कहीं स्थापित कर देंगे। और उन्हें राजनीति में सांसद बनाने का लालच। और हाल ही में जस्टिस वर्मा के हाथों में पकड़ी गई नकदी भी किसी लालच का नतीजा हो सकती है। साद भूषण कहते हैं कि तीसरा तरीका सबसे खतरनाक है। जजों के पीछे जांच एजेंसी लगाना? जी हां। प्रसाद भूषण ने कहा था कि एजेंसी लगाने से जज का माइनस पॉइंट पता चलता है। और जैसे ही आपको यह मिल जाए, उन्हें प्रताड़ित करना शुरू कर दिया जाता है। और उन्हें प्रताड़ित करके अपने हिसाब से/अपने हक में फैसले लिखवा लिया जाता है।
जस्टिस एस मुरलीधर ने कहा है कि स्वतंत्र न्यायपालिका के लिए स्वतंत्र मीडिया की आवश्यकता है। और स्वतंत्र मीडिया के अस्तित्व के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका की आवश्यकता है। इसकी आवश्यकता कैसे है? इसकी आवश्यकता क्यों है? यह सोचने की बात है। जान लें कि 2024 में वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 180 देशों की सूची में भारत की रैंकिंग 169वीं है। यानी ऐसा ही चलता रहा है। अगर कोई महान व्यक्ति 18 घंटे काम करता रहे तो जल्द ही हम नीचे से ऊपर आ जाएंगे। पूर्व जस्टिस एस मुरलीधर ने कहा कि इंटरनेट शटडाउन का भी लगातार इस्तेमाल किया जा रहा है। और यह प्रेस की स्वतंत्रता में भी बाधा है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में एक फैसले में कहा था कि इंटरनेट शटडाउन अपनी मर्जी से नहीं किया जाना चाहिए।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं हो रहा है। या तो बहुत कम है। कोर्ट के ऐसे आदेश के बाद भी सरकार इंटरनेट बंद करना जारी रखे हुए है। जो सीधे तौर पर पत्रकारों के लिए प्रतिबंध है। चाहे वह जम्मू-कश्मीर हो, या किसानों का विरोध प्रदर्शन हो, या मणीपुर की हिंसा हो, या फिर परीक्षाओं के दौरान इंटरनेट बंद करना हो। यह सब जल्दबाजी में किया जाता है। वर्ष 2022 और 2023 में एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में वैश्विक स्तर पर 294 बार इंटरनेट शटडाउन हुआ। और इनमें से 84 यानी 28% सिर्फ़ भारत में हुए। यानि इंटरनेट बंद करके हम लोगों की आवाज़ दबाने में भी सबसे ऊपर जा रहे हैं। पूर्व जस्टिस एस मुरलीधर ने मीडिया की आज़ादी के बारे में सब कुछ कह दिया है।
उन्होंने यह भी कहा कि अकेले 2023 में 5 पत्रकारों की हत्या हुई और 226 को निशाना बनाया गया। जिसमें से 148 मामलों के लिए राज्य के लोग जिम्मेदार थे, यानी सिस्टम जिम्मेदार था। इतना ही नहीं जस्टिस मुरलीधर का कहना है कि दिल्ली यानी भारत की राजधानी पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक क्षेत्र के रूप में उभर रही है। यहां 51 पत्रकारों को सरकारी एजेंसियों ने निशाना बनाया। ओडिशा के पत्रकार ज्योति रंजन महापात्रा पर हमला किया गया। नागपुर के पत्रकार विनय पांडे को सिर कलम करने की धमकी दी गई। छत्तीसगढ़ के एक पत्रकार को एक भ्रष्ट ठेकेदार ने मार डाला और उसके ही सेप्टिक टैंक में फेंक दिया। हाल ही में आपने देखा कि उत्तर प्रदेश में दैनिक जागरण के एक पत्रकार की गोली मारकर हत्या कर दी गई। पिछले कुछ दिनों से महाराष्ट्र का एक पत्रकार को संभाजी के नाम को लेकर विवाद के चलते लगातार लोगों ने उसको फोन करके धमकाया गया।
जब पत्रकार राजनीतिक भ्रष्टाचार, पर्यावरण अपराध, हिंसा और धमकियों जैसे संवेदनशील मुद्दों को कवर करते हैं, तो उन्हें हिंसा और धमकियों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा पत्रका