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तेजपाल सिंह 'तेज' : महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसक अपराध : एक गंभीर और जटिल मुद्दा

 महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसक अपराध : एक गंभीर और जटिल मुद्दा


भारत में दलित समुदाय के लोगों के साथ उत्पीड़न और भेदभाव एक गंभीर और जटिल मुद्दा है, जो सदियों से चला आ रहा है। दलित समुदाय के लोगों सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आधार पर विभिन्न प्रकार से शोषण और उत्पीड़न किया जाता है, जिससे उनके मानवाधिकारों का हनन होता है। दलित उत्पीड़न की घटनाएं न केवल व्यक्तिगत स्तर पर होती हैं, बल्कि सामूहिक स्तर पर भी होती हैं, जो पूरे समुदाय को प्रभावित करती हैं। प्रस्तुत लेख में, दलित उत्पीड़न की विभिन्न घटनाओं पर न केवल चर्चा की जाएगी, अपितु उनके कारणों, परिणामों और समाधानों पर विचार भी किया जाएगा। दलित समुदाय के लोगों के साथ होने वाले उत्पीड़न और भेदभाव के विभिन्न रूपों का विश्लेषण तो होगा ही, साथ ही उनके खिलाफ लड़ने के लिए आवश्यक कदमों पर भी चर्चा की जाएगी। यहाँ उत्पीड़न के अलग-अलग रूपों को अलग-अलग भागों में प्रस्तुत किया जा रहा है।

भारत में दलित महिलाओं के साथ बलात्कार की विभीषिका एक गंभीर और जटिल मुद्दा है। भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध जिनमें बलात्कार भी शामिल है, एक गंभीर मुद्दा है।  यहाँ कुछ आंकड़े और तथ्य हैं जो इस समस्या की गंभीरता को दर्शाते हैं :-


महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामले :

नई दिल्ली: न्यूज़क्लिक रिपोर्ट | 05 दिसंबर 2023 : राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट से पता चला है कि 2022 में भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 4% की चिंताजनक वृद्धि हुई है। इसमें पतियों और रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता, अपहरण, हमले और बलात्कार के मामले शामिल हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट में महिलाओं के खिलाफ दर्ज अपराधों में पर्याप्त वृद्धि का विवरण दिया गया है, जो 2020 में 3,71,503 मामलों से बढ़कर 2022 में 4,45,256 मामले हो गए हैं। 2021 के 4,28,278 मामलों की तुलना में 2022 के आंकड़े चिंताजनक वृद्धि दर्शाते हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत महिलाओं के खिलाफ अपराधों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा 'पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता' (31।4%), 'महिलाओं का अपहरण’ (19।2%), 'महिलाओं पर उनकी गरिमा को ठेस पहुँचाने के इरादे से हमला' (18।7%) और 'बलात्कार' (7।1%) शामिल है। प्रति लाख महिला आबादी पर अपराध दर 2021 में 64।5 से बढ़कर 2022 में 66।4 हो गई।

उल्लेखनीय है कि देश में दहेज निषेध अधिनियम के तहत 13,479 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 1,40,000 से अधिक मामले 'पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता' (आईपीसी की धारा 498 ए) के अंतर्गत वर्गीकृत किए गए। 36 राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और केंद्रीय एजेंसियों से एकत्र आंकड़ों के आधार पर, "भारत में अपराध 2022" शीर्षक वाली रिपोर्ट नीति निर्माण और विश्लेषण में शामिल सांसदों, सरकारों और हितधारकों के लिए महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। रिपोर्ट के निष्कर्ष महिलाओं के खिलाफ अपराधों से आगे बढ़कर बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों, अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के खिलाफ अपराधों में क्रमशः 8।7%, 9।3%, 13।1% और 14।3% की वृद्धि दर्शाते हैं। इसके अतिरिक्त, आर्थिक अपराधों में 11।1% की वृद्धि देखी गई, भ्रष्टाचार में 10।5% की वृद्धि हुई और 2022 में साइबर अपराधों में 24।4% की चौंका देने वाली वृद्धि हुई।

इसके अलावा, दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे प्रमुख शहरों में चिंताजनक रुझान देखे गए। दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 14,158 मामले दर्ज किए गए, मुंबई में 6,176 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 80।6% चार्जशीट दर थी, जबकि बेंगलुरु में 3,924 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 74।2% चार्जशीट दर थी। उत्तर प्रदेश में भारतीय दंड संहिता और विशेष एवं स्थानीय कानूनों (एसएलएल) के तहत महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक 65,743 मामले दर्ज किए गए, महाराष्ट्र में 45,331 मामले दर्ज किए गए, और राजस्थान में 45,058 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से प्रत्येक में आरोप पत्र की दर अलग-अलग थी। रिपोर्ट के खुलासे देश भर में कमजोर जनसांख्यिकी के खिलाफ अपराधों में खतरनाक वृद्धि को संबोधित करने के लिए व्यापक रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।


सित। 2024: दलित महिलाओं के खिलाफ नहीं थम रहे हिंसक अपराध

यह बेहद चिंता की बात होनी चाहिए क्योंकि बड़ी संख्या में मामलों में पुलिस ने जांच पूरी होने के बाद चार्जशीट फाइल करने के बजाय फाइनल रिपोर्ट दाख़िल कर दी जाती है। जैसा कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के हवाले से पहले ही खबरों में बताया जा चुका है कि 2022 के दौरान महिलाओं के खिलाफ हुए कुल अपराधों के तहत 4,45,256 मामले दर्ज किए गए, जो 2021 (4,28,278 मामले) की तुलना में 4 फीसदी की वृद्धि को दर्शाते हैं। लेकिन एनसीआरबी की तालिका 3ए।1 और तालिका 3ए।2 की छानबीन करने से पता चलता है कि हत्या के साथ बलात्कार/सामूहिक बलात्कार की श्रेणी में 2017 और 2022 के बीच 1,551 मामले दर्ज किए गए। हत्या के साथ बलात्कार/सामूहिक बलात्कार के सबसे अधिक 294 मामले 2018 में और सबसे कम 219 मामले 2020 में दर्ज किए गए थे।

यह रपट कोलकाता के एक सरकारी अस्पताल आरजी कर में एक डॉक्टर के साथ क्रूर बलात्कार-हत्या और अन्य राज्यों में यौन उत्पीड़न के हालिया मामलों पर जारी आक्रोश के बीच आई है जो दर्शाती है कि पूरे देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा, हत्या और बलात्कार के मामलों में काफी वृद्धि हुई है। अगर वर्षवार इसकी व्याख्या करें तो पाएंगे कि 2017 में यह संख्या 223 थी; 2019 में 283; 2021 में 284 और 2022 में 248; छह वर्षों के राज्यवार आंकड़ों से पता चला है कि यूपी में सबसे अधिक मामले (280) दर्ज किए गए, उसके बाद मध्य प्रदेश (207), असम (205), महाराष्ट्र (155) और कर्नाटक में (79) मामले दर्ज किए गए हैं।

गैर-लाभकारी कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव द्वारा किए गए विश्लेषण में बताया गया है कि कुल 1,551 मामलों को देखें तो यह करीब 258 से थोड़ा अधिक मामलों का वार्षिक औसत बनता है। रिपोर्ट के मुताबिक, "दूसरे शब्दों में कहें तो, 2017-2022 के बीच हर हफ्ते औसतन बलात्कार/सामूहिक बलात्कार और हत्या के लगभग पांच मामले (4।9) सामने आए हैं।" एनसीआरबी ने अपनी वार्षिक 'क्राइम इन इंडिया' रिपोर्ट में बलात्कार/सामूहिक बलात्कार के बाद हत्या के आंकड़ों को एक अलग श्रेणी के रूप में वर्ष 2017 से रिपोर्ट करना शुरू किया था।

जहां महिलाओं के ऊपर हुए ज़ुल्म के खिलाफ मुकदमें लड़ने और निर्णयों पर पहुँचने का सवाल है, इनमें जिन 308 मामलों में सुनवाई पूरी हुई है उनमें से दो तिहाई से थोड़ा कम (65 फीसदी) मामलों (यानी 200 मामलों) में दोषसिद्धि हुई। एक तिहाई से ज़्यादा जिन मामलों में, या तो आरोपी छूट गए वह 6 फीसदी है और 28 फीसदी ऐसे हैं जिनमें आरोपी बरी हो गए हैं। इसके कुछ भी कारण हो सकते हैं जिसमें पीड़ित की तरफ से मुक़दमा सही तारीके से न लड़ा जाना या फिर आरोपियों के दबाव में आकर मामले को ढीला छोड देना। दोषसिद्धि की दर 2017 में सबसे कम (57।89 फीसदी) और 2021 में सबसे ज़्यादा (75 फीसदी) रही है। 2022 में यह गिरकर 69 फीसदी रह गई थी। यानी जहां महिलाओं के खिलाफ हिंसा और बलात्कार के मामलों में वृद्धि हुई वहीं उनकी दोषसिद्धि की दर में गिरावट आई है जो अपने आप में चिंता की बात है। 

एनसीआरबी के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि ट्रायल कोर्ट में बलात्कार/हत्या के साथ सामूहिक बलात्कार के मामलों की संख्या में साल दर साल वृद्धि हुई है। कुल मामलों की संख्या यानी बैकलॉग और ट्रायल के लिए भेजे गए नए मामले, 2017 में सबसे कम यानी 574 थे जो 2022 तक लगातार बढ़कर 1,333 हो गए, यानी यह 132 फीसदी की वृद्धि है।

एक समाज जिसमें महिलाओं को देवी का दर्जा दिया जाता है वही समाज उन्हें महिला का दर्जा देने में असमर्थ है और किसी भी समाज के लिए “यह बेहद चिंता की बता होनी चाहिए क्योंकि बड़ी संख्या में मामलों में पुलिस ने जांच पूरी होने के बाद चार्जशीट फाइल करने के बजाय फाइनल रिपोर्ट दाखिल की। इन छह सालों के दौरान बलात्कार/हत्या के साथ सामूहिक बलात्कार के 140 मामलों को फाइनल रिपोर्ट के साथ बंद कर दिया गया, जिनमें से 97 बलात्कार/हत्या के साथ सामूहिक बलात्कार के आरोपियों पर मुकदमा चलाने के मामले में अपर्याप्त सबूतों के कारण बंद कर दिए गए।" हमारे देश के भीतर महिलाओं के मामले में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की यह हालत है। इसमें कोई शक नहीं कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों को महिलाओं के प्रति अधिक संवेदनशील बनाने की जरूरत है ताकि समाज में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों पर नकेल कसी जा सके।

ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि एनसीआरबी ने डेटा उन मामलों के संबंध में भी एकत्र किया है, जहां पुलिस अपनी जांच में आरोपी पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं जुटा पाई या जहां आरोपी का पता नहीं चल पाया, या शिकायत झूठी पाई गई या जहां मामला तथ्य या कानून की गलती के कारण निराधार हो गया या मुद्दा सिविल विवाद की प्रकृति का था।

नोट करने वाली बात यह है कि इन छह वर्षों में से चार में, महामारी के वर्षों के दौरान भी चार्जशीट की दर 90 फीसदी से अधिक थी। 2018 में सफलता दर 90 फीसदी से नीचे 87 फीसदी आ गई और हाल ही में 2022 यह गिरकर 85 फीसदी हो गई। हालांकि, कुछ निष्कर्ष यह भी बताते हैं कि पुलिस इस दौरान हत्या के साथ बलात्कार/सामूहिक बलात्कार के 32-49 फीसदी मामलों में जांच भी पूरी नहीं कर पाई है। (https://hindi।newsclick।in/Crimes-against-women-are-not-stopping)

प्रतीकों का इस्तेमाल करके तरह-तरह से भाजपा दलित हितैषी होने का दावा कर रही है। लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। भाजपा सरकार लगातार दावा कर रही है कि दलितों की स्थिति में सुधार हो रहा है, दलित उत्पीड़न की घटनाओं में कमी आई है। सफाई कर्मियों के पांव धोकर, अंबेडकर की तस्वीर और अन्य प्रतीकों का इस्तेमाल करके तरह-तरह से भाजपा दलित हितैषी होने का दावा कर रही है। लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी कह रहे हैं।

राज्यसभा सांसद जवाहर सरकार नें सदन में दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ रहे अपराधों के बारे में गृह मंत्रालय से सवाल पूछा। जिसका लिखित जवाब 20 जुलाई 2022 गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने दिया।उन्होंने अपने जवाब में पिछले पांच सालों के जो आंकड़े दिये हैं वो चौंकाने वाले हैं और दलितों को लुभाने वाले सरकारी प्रोपगेंडा की पोल खोल कर रख देते है। आइये, इन आंकड़ों की नज़र से देखते हैं कि देश में पिछले पांच सालों में दलित उत्पीड़न की क्या स्थिति रही है।


पिछले पांच सालों में दलितों के ख़िलाफ़ अपराध में 23% बढ़ोतरी

गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय द्वारा राज्यसभा में दिये गये लिखित जवाब के अनुसार वर्ष 2016 में दलितों के खिलाफ अपराध के कुल 40,801 मामले दर्ज़ किय गये थे, 2017 में 43,203, वर्ष 2018 में 42,793, वर्ष 2019 में 45,961 और 2020 में ये संख्या बढ़कर 50,291 हो गई। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि पिछले पांच सालों में दलितों के खिलाफ अपराध के मामलों में साल दर साल लगातार बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2016 में जहां कुल अपराधों की संख्या 40,801 थी, वहीं 2020 में बढ़कर 50,291 हो गई। यानी पिछले पांच सालों में दलितों के खिलाफ होने वाले अपराधों में 23% बढ़ोतरी हुई है। ये काफी चिंताजनक स्थिति है और सरकार के दलित हितैषी होने के तमाम दावों और प्रोपगेंडा की पोल खोल कर रख दे रही है।




दलित महिलाओं के रेप के मामलों में 33% वृद्धि

गौरतलब है कि दलितों में भी दलित स्त्री तथाकथित सवर्णों की ताकत और जाति व्यवस्था का सबसे नृशंस रूप भुगतती हैं। दलित स्त्री के शरीर को मर्दानगी, श्रेष्ठता, ताकत दिखाने के साथ-साथ मौज-मजा करने, सबक सिखाने और बदला लेने के लिए एक मैदान की तरह देखा जाता है। पिछले पांच सालों में दलित महिलाएं भयानक क्रूरता का सामना कर रही हैं। राज्यसभा में पेश किये गये आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि पिछले पांच सालों में दलित महिलाओं के साथ रेप के मामलों में साल दर साल लगातार बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2016 में दलित महिलाओं के रेप के 2,541 मामले दर्ज़ किये गये थे, वर्ष 2017 में 2,714, वर्ष 2018 में 2,936, वर्ष 2019 में 3,484 और वर्ष 2020 में 3,372 मामले दर्ज़ किये गये हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच सालों में दलित महिलाओं के रेप के मामलों में लगभग 33% बढ़ोतरी हुई है। यानी एक-तिहाई बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है।  यहाँ दिए गए आँकड़ों के दृष्टिगत कहा जा सकता है कि  भारत महिलाओं के लिए सुरक्षित जगह नहीं है। किंतु सवाल यह है कि ऐसा कब तक चलता  रहेगा इसके बारे में शायद किसी को कुछ मालूम नहीं है, ऐसा लगता है।

2024 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के गंभीर मामले


दिल्ली गैंगरेप

- 16 दिसंबर 2012 की वो रात जब निर्भया के साथ इतनी बर्बरता हुई थी कि देश ही नहीं पूरी दुनिया ने यह मान लिया था कि भारत महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है। निर्भया को सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया गया था, उसकी आंत तक बाहर निकाल दी गई थी। दिल्ली और सिंगापुर में इलाज चलने के 11 दिनों के बाद उसकी मौत हो गई थी।


- जनवरी की दूसरी तारीख को नए साल का जश्न मनाते हुए लोगों को यह पता भी नहीं होगा कि दिल्ली में 12 साल की लड़की के साथ गैंगरेप हुआ। उसका रेप करने वालों में 36 साल का एक पुरुष भी शामिल था। इसके अलावा, 12, 14 और 15 साल के तीन लड़के जो मुख्य आरोपी के साथ काम करते थे। इस मामले में एक महिला भी शामिल थी जिसने धोखे से नाबालिग लड़की को उन दरिंदों के पास भेज दिया।


- दिल्ली के नरेला इलाके में 10 साल की बच्ची के साथ गैंगरेप हुआ और उसकी हत्या कर दी गई। आरोपी 20 और 30 साल के थे और उन्होंने बच्ची को मारने के लिए उसके चेहरे को पत्थर और ईंट से कुचल दिया। यह मामला जून का है। बच्ची अपने घर नरेला सेक्टर 6 लोकेलिटी से गायब हो गई थी। रात 9।45 को वह गायब हुई थी और रात 12।30 बजे उसकी मिसिंग कंप्लेंट फाइल हुई थी। पुलिस ने आस-पास का इलाका छाना और उसका शरीर ढूंढा। उसके चेहरे को इतना मारा गया था कि कोई उसे पहचान भी नहीं पा रहा था।


मुंबई रेप केस : मुंबई रोड किलिंग केस

- एक इंसान ने अपनी एक्स गर्लफ्रेंड को मुंबई के वसई इलाके के पास मार दिया। उसके सिर पर पाने (गाड़ियों की मरम्मत के लिए यूज होने वाला टूल) से कई बार वार किया गया। लोग देखते रहे, लाइव मर्डर होता रहा, लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा।


-फरवरी में ही 29 साल की एक महिला का मुंबई के होटल मैनेजर ने रेप किया। होटल में महिला बिजनेस ट्रिप के लिए गई थी और वहीं उसके साथ असॉल्ट हुआ। महिलाओं को काम के सिलसिले में बाहर भेजने के बाद क्या कंपनी का इतना भी दायित्व नहीं कि महिलाओं की सुरक्षा देखी जाए?

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