
तेजपाल सिंह ‘तेज’ : डा. अंबेडकर के विचारों को फूल-मालाओं के नीचे दफनाने की साजिश
डा. अंबेडकर के विचारों को फूल-मालाओं के नीचे दफनाने की साजिश
-तेजपाल सिंह ‘तेज’
अपने भारत की वर्तमान राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक विकृत स्थिति को देखते हुए अगर ये कहा जाए कि भारत को आज ऐसे राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक प्रतिनिधित्व की जरूरत है, जो भारत को नई सिरे से सभ्य बना दे, तो आज की सत्ता को यह कतई भी रास नहीं आएगा। वह इसलिए कि शायद नए प्रतिनिधित्व के चलते शायद आए रोज होने वाले बलात्कार पर अंकुश लग जाए, शायद आंबेडकर की मूर्तियां तोड़ने को अनदेखा न किया जाए और उन पर कालिख पोतने के काम को सत्ता की नजर में एक अपराध की तरह देखा जाए। बहुजनों और अल्पसंख्यकों के घर उजाड़े जाएं। हिंदू-मुसलमान का इतिहास खोदने के बहाने अभिव्यक्ति का गला न घोटा जाए। शायद मस्जिदों, चर्चों और जैन मंदिरों को तोड़्ने का सिलसिला रुक जाए। शायद विगत को याद करके वर्तमान के माथे को कलंकित न किया जाए।
आज की हालत तो यह है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिए गए निर्णयों के दृष्टिगत सत्ता के लोग सुप्रीम कोर्ट को ही धमका रहे हैं। क्या यह देश द्रोह के दायरे में नहीं आता? इस तरह तो दलितों का भारत में जीना दूभर हो जाएगा। बकौल सत्यहिंदी के श्रीवास्तव, कुछ लोग सवाल उठाते है कि अंबेडकर ने दलितों के अलावा बाकी भारतीयों विशेषकर महिलाओं के लिए क्या किया है? तो ऐसे सवाल उठाने वालों को जान लेना चाहिए कि अगर आज उनकी बहन स्कूल जाती है, कॉलेज में पढ़ती है, नौकरी करती है, या तलाक के बाद सम्मान के साथ जीती है, तो याद रखना कि ‘हिंदू कोड बिल’ डॉ अंबेडकर के द्वार लाया गया था। विधवा को दोबारा शादी करने का अधिकार है, बेटी को पिता की संपत्ति में हिस्सा है। ये सब साल 1951 में आसान नहीं था। यहाँ यह भी जानने की जरूरत है कि हिंदू कोड बिल के पास न होने की स्थिति में बाबा साहब ने मंत्रीमंडल से त्याग पत्र दे दिया था। लेकिन उसी हिंदू कोड बिल को कांग्रेस सरकार के द्वारा ही किश्त-दर-किश्त पास किया गया। इतना ही नहीं, 1920 में जब अंग्रेज मजदूरों/नौकरीपेशा लोगों से 14-15 घंटे काम करवाते थे तो बाबा साहब के प्रयासों से भारत में 8 घंटे का कार्य दिवस लागू किया गया। आज अगर आप ऑफिस से समय पर घर लौटते हैं तो बाबा साहब को धन्यवाद कहें।
बाबा साहेब के प्रयासों से ही मजदूरों को दुर्घटना बीमा मिला, महिलाओं को मातृत्व लाभ मिला, मजदूरों को सर्वोच्च अधिकार मिले। और ये सब बाबा साहेब ने तब किया, जब देश में किसी को इन सबकी परवाह नहीं थी। भारत को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का हिस्सा भी बाबा साहब ने बनाया। यह भी कि आज जब हम RBI के नोटों से खरीदारी करते हैं, तो उसके पीछे बाबा साहब का ही हाथ था। उनकी थीसिस ‘द प्रॉब्लम ऑफ द रुपी’ के आधार पर ही हिल्टन यंग कमीशन ने 1935 में भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की थी। जिस संविधान की वजह से आज हम सब सांस ले पा रहे हैं, दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान जिस व्यक्ति के प्रतिनिधित्व मे बनाया गया, उनका नाम है भारत रत्न डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर।
भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के शोर के बीच आज हम इस विषय पर डॉ. अंबेडकर के विचार और आरएसएस या हिंदुत्व की राजनीति के चलते उनके रिश्ते की सच्चाई जानेंगे। आखिर आरएसएस और उसके प्रभाव ने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को राजनीति में इतना ताकतवर क्यों बना दिया है? क्या वे डॉ. अंबेडकर के विचारों से डरते हैं? और क्या यही वजह है कि वे बाबा साहेब को विचारों को दफ्न करके, उन्हें एक मूर्ति में बदलने की कोशिश कर रहे हैं? और क्या यह डॉ. अंबेडकर के विचारों को फूलों की मालाओं के नीचे दफनाने की साजिश नहीं? 14 अप्रैल, 2025 को यानी भारतीय संविधान के अमर शिल्पी डॉ. अंबेडकर का 135वां जन्मदिन है। और इस जन्मदिन को पूरे देश में जोर-शोर से मनाया गया। इस अवसर पर देश के प्रमुख राजनेताओं ने श्रद्धा-सुमन अर्पित किए। और इसके अलावा संसद में सत्ता पक्ष और विपक्ष के सभी नेता डॉ. अंबेडकर को श्रद्धांजलि देने के लिए एक साथ आए हैं। इससे पता चलता है कि अब सभी का मानना है कि डॉ. अंबेडकर का सम्मान किया जाना चाहिए। पूरे देश में उनको सम्मान दिया गया। उनको भावनात्मक सम्मान दिया गया। आम लोगों ने भी अलग-अलग जगहों पर भव्य आयोजन करके बाबा साहेब को श्रद्धा-सुमन अर्पित किए। इसमें कोई आशंका नहीं है कि डॉ. अंबेडकर अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी के रूप में स्वीकृति मिल रही है।
इस अवसर पार प्रधानमंत्री मोदी ने X पर लिखा कि मैं देश के सभी लोगों की ओर से भारत रत्न पूज्य बाबा को उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन करता हूं। उनकी प्रेरणा ही है कि देश आज सामाजिक न्याय के सपनों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। मोदी जानते हैं कि डॉ. अंबेडकर का पूरा जीवन दलित समाज को ही नहीं अपितु समूची मानवता को समानता दिलाने के लिए था। बाबा साहेब अंबेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर देश के सामने उत्तर प्रदेश से एक तस्वीर सामने आई है। ये तस्वीर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से आई है। करछना थाने के अंतर्गत भुंडा चौकी क्षेत्र का एक गांव जिसका नाम सौता है। खबरों के अनुसार ये 2025 की ही घटना है।खबर है कि प्रयाग राज में एक दलित युवक को गेहूं के बोझ में जिंदा जला दिया गया था। गांव में पुलिस बल तैनात कर दिया गया। एक अन्य अखबार ये भी है कि प्रयाग राज में दबंगों ने मजदूरी के बहाने दलित युवक की हत्या की। दबंग क्या होते हैं? ये दबंग कहां से आते हैं? कोई भी अखबार यह कभी नहीं बताता। जबकि भाजपा की डबल इंजन सरकार के सामाजिक न्याय के प्रति कथित समर्पित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा किया है कि वे राम राज लेकर आए हैं।
उत्तर प्रदेश में जगह-जगह हिंदू विजय का जश्न मनाया जा रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि डॉ. अंबेडकर ने हिंदू राष्ट्र के बारे में क्या कहा था? डॉ. अंबेडकर ने चेतावनी दी थी कि अगर हिंदू राज्य वास्तव में बन जाता है, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह देश के लिए एक भयानक बाधा होगी। क्योंकि हिंदू राष्ट्र की अंतर-भावना स्वतंत्रता, समानता और मित्रता के लिए खतरा है। इस दृष्टि से यह लोकतंत्र के लिए उपयुक्त नहीं है। हिंदू राज्य को हर कीमत पर रोका जाना चाहिए। (यह पृष्ठ संख्या 358 है।) यह कथन डॉ. अंबेडकर की ‘पाकिस्तान और भारत का विभाजन’ नामक किताब से लिया गया है। आश्चर्य की बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी समेत भाजपा के सभी नेता जो एक तरफ डॉ. अंबेडकर के पक्ष में हैं, वहीं हिंदू राष्ट्र बनाने की बात कहने वालों की पीठ भी थपथपाते हैं।
धीरेंद्र शास्त्री से मोदी जी के मिलन के बाद धीरेंद्र शास्त्री पिछले कुछ दिनों में बहुत लोकप्रिय हो गए हैं। वे बाबा बागेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हो गए हैं। और प्रधानमंत्री मोदी जी उनके मंच पर जाकर उन्हें आशीर्वाद दे रहे हैं। हैरत की बात है कि मोदी जी ने धीरेंद्र को अपना छोटा भाई कहकर संबोधित किया। मोदी जी के छोटे भाई कुछ दिन पहले जुलूस निकाल रहे थे। क्योंकि धीरेंद्र का मकसद भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना है। लेकिन, ताजा खबर यह है कि वे हिंदू गांव बना रहे हैं। जिसमें वह प्लॉटिंग करके बिल्डिंग बनाएगा और फ्लैट बेचेगा। तो हिंदू राष्ट्र की तैयारी हिंदू गांव की थी। और हिंदू गांव की तैयारी अब बिल्डर की तैयारी में बदल गई है। इस प्रकार के संदर्भ डा. अम्बेडकर, भाजपा और भाजपा की पित्र-संस्था आर एस एस के बीच की विचारधारा का साफ-साफ खुलासा करते हैं। यानी आरएसएस और डॉ. अंबेडकर के बीच का रिश्ता पूरी तरह एक दूसरे के विपरीत हैं। विदित हो कि भारतीय संविधान से सबसे ज्यादा नाराज आरएसएस ही था।
जब संविधान सभा ने संविधान के प्रारूप को स्वीकार किया, यानी 26 नवंबर 1949 को, तो चार दिन बाद यानी 30 नवंबर को RSS के संगठक ने लिखा था। कि हमारे संविधान में प्राचीन भारत के अद्वितीय संवैधानिक विकास का कोई उल्लेख नहीं है। मनु के नियम, जो स्पार्टा के लैकर या फ़ारस के सोलोन से बहुत पहले लिखे गए थे, आज भी पूरी दुनिया में सराहे जाते हैं। और स्वाभाविक रूप से आज्ञाकारिता और आज्ञाकारिता की प्रेरणा देते हैं। लेकिन हमारे संविधान विद्वानों के लिए इसका कोई महत्व नहीं है। यानी RSS इस बात से नाराज था कि इसमें मनुस्मृति का कोई जिक्र नहीं है। मनु के नियमों का कोई जिक्र नहीं है। और सिर्फ़ RSS ही क्यों? RSS के एक प्रमुख विचारक, जो RSS में नहीं थे, लेकिन हिंदू महासभा में थे, सावरकर ने भी कुछ ऐसा ही कहा था। उन्होंने कहा कि