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तेजपाल सिंह ‘तेज’ : ब्राह्मणों से ब्राह्मणवाद ज्यादा खतरनाक है



ब्राह्मणों से ब्राह्मणवाद ज्यादा खतरनाक है

-तेजपाल सिंह ‘तेज’


ओशो कहते हैं, ‘मैं एक अनाथालय में गया। वहाँ बच्चों को धर्म सिखाया जाता है। मैंने उनसे पूछा कि वे क्या पढ़ाते हैं। क्योंकि मुझे समझ में नहीं आता कि धर्म सिखाया जा सकता है। यह असंभव है। अगर सिखाया जा सकता तो 5000 साल पहले होता। अब तक तो मनुष्य धार्मिक हो गया होगा। और हमने सब कुछ सिखा दिया है। सबको पता है कि ईश्वर है, आत्मा है, मोक्ष है, दीक्षा है, कर्म है। इस बात को वो जानते नहीं, बस मानते हैं। लेकिन उनके धर्म पढ़ाने से कोई भी व्यक्ति इस वजह से धार्मिक नहीं बन पाया है। दरअसल, जो लोग ऐसी बातें मानते हैं, वे बहुत खतरनाक होते हैं।जो लोग ऐसी बातें मानते हैं, वे हमेशा बच्चों/लोगों को मुसीबत में ही नहीं ले जाते अपितु अधर्म में भी ले जाते हैं। जो आदमी रोज गीता पढ़ता है, वह कल मस्जिद जलाने की सलाह दे सकता है। उनका ये ज्ञान बहुत खतरनाक है। ये ज्ञान दुनिया में प्रेम नहीं लाता। ये ज्ञान दुनिया में शांति नहीं लाता।यह युद्ध लाता है, हिंसा लाता है। इस प्रकार यह ज्ञान किसी को धार्मिक नहीं बनाता।  फिर भी, मैंने धर्म पढ़ाने वालों से पूछा - आप क्या सिखाते हैं? तो उन्होंने कहा, आप स्वयं र बच्चों से पूछिए। मैं बच्चों के पास गया। मैंने  खुद बच्चों से पूछा, ‘क्या ईश्वर है?’  उन सभी बच्चों ने हाथ उठाए। उन्हें पढ़ाया गया है कि ईश्वर होता है। उनके हाथ बिलकुल झूठे हैं। उन बच्चों को नहीं पता कि भगवान है या नहीं। लेकिन वे अपने हाथ ऊपर उठा रहे हैं।झूठ की नींव रखी जा रही है। इस नींव पर उनके पूरे जीवन का घर बनेगा। यह नींव झूठी है। ये बच्चे कुछ भी नहीं जानते हैं। और जिन बच्चों को हम इतना बड़ा झूठ सिखा रहे हैं, अगर हम उम्मीद करें कि वे जीवन में सत्यवादी बनेंगे, तो यह अन्याय और अज्ञान की बात है। हम इतना बड़ा झूठ उन बच्चों को सिखा रहे हैं जो कुछ भी नहीं जानते हैं।उनका धर्म झूठा है।

अत: यह बेशक कहा जा सकता है कि धर्म गरीब आदमी का सबसे बड़ा शोषक है। धर्म ने भारत की सभ्यता को बर्बाद कर दिया है। इसने बहुत नुकसान पहुंचाया है। सभी पंडित-पुरोहितों ने समाज से झूठ बोला है कि मोक्ष प्राप्त करना ही सर्वश्रेष्ठ है। मोक्ष का अर्थ है जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा पाना। आत्मा अपने स्वरूप में रहती है। और उस मूर्ख को कुछ भी पता नहीं है। उसके मुँह में जो आया वो बोल दिया होगा। उसके बाद 84 लाख साल तक सोच कर पूरा भारतीय समाज नष्ट हो गया। और कुछ मूर्ख थोड़ी सी बुद्धि से यह पता लगा लेते हैं कि पिछले जन्म में वे गधा थे या कुत्ता और अगले जन्म में क्या बनेंगे। यह बहुत बढ़िया बिजनेस मॉडल है जिसमें 100% आरक्षण एक जाति के हाथ में है। अगर पुजारी से मोक्ष नहीं मिला तो भूत बन जाओगे। नरक में जाओगे। सबसे अच्छा विज्ञापन वह है जो किसी को डराए और फिर मिथ्या रास्ता दिखाए । दुनिया में इससे बेहतर कोई तरीका नहीं है समझाने या विज्ञापन देने का। दुनिया में किसी पर विश्वास नहीं किया जाता। इसीलिए विज्ञापन में पहले महिला को विधवा होने का डर दिखाओ और फिर उसकी शादी कराने के लिए बीमा का लोभ दिखाओ।

यथोक्त के आलोक में, हमें ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद में क्या अंतर है, यह समझने की जरूरत है। यह भी कि ब्राह्मणवाद खतरनाक क्यों है। नॉकिंग डॉट कॉम (नॉकिंग न्यूज) के ग्रिजेश वशिष्ठ के हवाले से हमें इस बात को समझने में काफी हद तक मदद मिलेगी। वे कहते हैं - आज मैं एक ऐसी बात करने जा रहा हूँ जिसके बारे में मुझे पता है कि या तो इसका बहुत विरोध होगा या फिर इसे बहुत प्यार मिलेगा। लेकिन इसके बावजूद, यह एक ऐसा विषय है जिसके बारे में सभी को पता होना चाहिए । आमतौर पर जब हम ब्राह्मणों की बात करते हैं तो इस पर कई तरह की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिलती हैं। बहुत से लोग मानते हैं कि ब्राह्मणों ने इस देश की पूरी व्यवस्था को बर्बाद कर दिया है। और बहुत से लोग ये भी मानते हैं कि भारत में जो भी सुधार हुआ है, जितनी भी बड़ी चीजें हुई हैं, उसमें ब्राह्मणों का ही हाथ रहा है।

अब इन दोनों चीजों में क्या अंतर है? अगर आप पहचान के नजरिए से देखें तो पहचानना मुश्किल है। मैं हमेशा कहता हूं कि किसी व्यक्ति को मत देखिए , उसके काम को देखिए । जब ​​आप दोनों चीजों को काम से अलग करेंगे तो आपके सामने एक तस्वीर आएगी। और वो तस्वीर क्या होगी आज  मैं एक  वीडियो के जरिए आपको दिखाने जा रहा हूँ। मैं आपको बताने जा रहा हूँ कि इस देश के विकास में, और हमारी संस्कृति के विकास या विनाश में, ब्राह्मणों का क्या योगदान था, उनका इतिहास क्या है।  और ऐसे तत्वों ने हमारे देश को कैसे नुकसान पहुँचाया तो कैसे? जब मैं ब्राह्मण शब्द का प्रयोग करता हूँ तो कहीं न कहीं एक विचार मन में आता है, जिसका मतलब है कि कुछ ऐसा है जो ब्राह्मणों से संबंधित है यानी जो ब्राह्मण जाति से पैदा हुए हैं। बहुत से लोग कहते हैं कि ब्राह्मणवाद एक अलग विचारधारा है, ब्राह्मणवाद कोई जाति नहीं है। लेकिन इसे समझना बहुत मुश्किल है और बहुत जटिल है। अगर कोई आपसे सीधे पूछे कि भाई ये बताओ कि ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद में क्या अंतर है तो इसका उत्तर देना बहुत मुश्किल हो जाता है। आज मैं उसी के बारे में बात करने वाला हूँ। सबसे पहले मैं उन ब्राह्मणों के बारे में बात करूँगा जिन्होंने इस दुनिया को एक नई दिशा दी और खास तौर पर भारत को एक नई दिशा दी।

ईश्वरचंद विद्यासागर को कौन नहीं जानता? वे बंगाल के एक महान नेता थे। 1856 में ईश्वरचंद विद्यासागर ने विधवा पुनर्विवाह कानून पारित किया और उसके लिए उन्होंने आवाज़ उठाई । ईश्वरचंद विद्यासागर एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने बेटे की शादी एक विधवा से करवाई जिसके बारे में उस समय लोग कल्पना भी नहीं कर सकते थे। आमतौर पर आजकल के नेता भाषण कुछ अलग देते हैं और उनके व्यक्तिगत जीवन में कुछ अलग होता है। और वहाँ के जुलाहियों के पूरे समुदाय में ईश्वरचंद विद्यासागर जैसे लोगों से जुड़े सुधार के गीत भी थे। उन्होंने भारत में एक बहुत बड़ा जन-जागरण आंदोलन चलाया था। और वह जाति से और जन्म से ब्राह्मण थे। वह बहुत सुधारवादी थे। दूसरा उदाहरण मैं उसी बंगाल के राजा राम मोहन राय का लेता हूँ। जब किसी महिला का पति मर जाता था तो उसकी पत्नि का किसी को बोझ न उठाना पड़े,  उसे उसके पति के साथ ही लोग आग में जला देते थे यानी मार देते थे। और उसका नाम ‘सती’  रखा गया। इस प्रकार के सामाजिक ताने-बाने और पुरुषवादी व्यवस्था में एक समय ऐसा आय कि सतीप्रथा को मानने के कारण महिलाएं खुद अपने आप खुद ही पति की चिता में बैठ जाती थीं और जिंदा जल जाती थीं। ये बुराई हमारे देश में गहरे से व्याप्त थी। तीसरा उदाहरण महर्षि दयानंद सरस्वती का है। उन्होंने कर्मकांड, मूर्ति पूजा और अन्य चीजों का विरोध किया। और वे उन चीजों के लिए लड़ते रहे।

ये तीनों ही जाति से ब्राह्मण थे। अगर आप आधुनिक सुधारवादियों को छोड़ दें जिन्हें आप वामपंथी कहते हैं, या वैज्ञानिक सोच के लोग कहते हैं या यूँ कहें जो पुरातनपंथी सोच को नहीं मानते, जो हर तरह के धर्म और कर्मकांड के खिलाफ हैं। वे एक महान वामपंथी नेता थे। वे भी जाति से ब्राह्मण थे। नंबूदरीपत भी  ब्राह्मण समुदाय से थे। इसके अलावा श्रीपाद अमृतधंगे भी ब्राह्मण थे। इस देश को सुधारने के लिए, इस देश को दिशा देने के लिए अनेक ब्राह्मणों ने निरंतर काम किया। ये इस देश के ब्राह्मणों का योगदान है। यानि अगर आप जाति से पहचान करने जाएँगे तो मैं आपको ये चार उदाहरण दूँगा। तब आप कहेंगे कि ब्राह्मण बहुत अच्छे होते हैं। लेकिन ब्राह्मण न तो अच्छे हैं और न ही बुरे। अब मैं आपके सामने एक और तस्वीर लाने जा रहा हूँ, जो बहुत ही घिनौनी और शर्मनाक है। यह ब्राह्मणों की तस्वीर नहीं है, यह ब्राह्मणवाद की तस्वीर है।

जब छत्रपति शिवाजी महाराज ने बहुत से राज्य जीते और बहुत से राज्य जीतने के बाद जब उन्होंने राजगद्दी पर बैठने का अपना कर्तव्य निभाया। तब उनका राज्याभिषेक होना था, तो ऐसे पराक्रमी राजा का राज्याभिषेक करने का इतिहास में लिखा गया तो पता चलता है कि  महाराष्ट्र के शुद्धतम ब्राह्मणों ने शिवाजी का राज्याभिषेक करने से इसलिए मना कर दिया था कि ये आदमी शूद्र है। यह न तो क्षत्रिय है, न ब्राह्मण और न ही वैश्य, वो एक शूद्र है। आखिर में काशी से एक पुजारी को बुलाया गया। उनका नाम था गंगा भट्ट। काशी से जब गंगा भट्ट आये तो उन्होंने शिवाजी महाराज का राज तिलक तो किया लेकिन उसमें भी उन्होंने कहा कि मैं ब्राह्मण हूँ, शूद्र का स्थान पैर में होता है तो छत्रपति शिवाजी महाराज का राज तिलक उन्होंने अपने पैर के अंगूठे से शिवाजी का  राज तिलक किया। उन्होंने उन्हें अपने हाथ से छुआ तक नहीं। शिवाजी के बेटे शंभाजी राव ने भी इस तरह की बहुत सी चीजें सहन की थीं। साहूजी महाराज जो शिवाजी महाराज के पोते थे, उन्होंने शिवाजी महाराज के राज्य को बहुत बढ़ाया। उन्हें भी ऐसी अपमानजनक चीजें सहनी पड़ी थीं। साहूजी महाराज जब वाणगंगा में स्नान करने जाते थे तो उनके कुल पुरोहित उनका वैदिक मंत्रों से उपचार नहीं करते थे। वो पुराणों के मंत्र पढ़ते थे। साहूजी महाराज इस बात इतने क्रोधित हुए कि उन्होंने घोषणा की कि आज से मेरे राज्य में प्रजापति जाति के लोग पुजारी होंगे और उन्होंने प्रजापति जाति के लोगों को पुजारी बना दिया। उसके बाद प्रजापति जाति के पुजारी लोग वो सारे कर्मकांड करने लगे।

यहाँ यह समझने में कोई दिक्कत नहीं कि काशी के पुजारे गंगा भट्ट ब्राह्मण जरूर थे लेकिन ब्राह्मणवाद उनके सिर पर सवार था। ब्राह्मण का यही ब्राह्मणवाद सबसे खतरनाक पहलू है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि  ब्राह्मण बुरा नहीं है, ब्राह्मणवाद बुरा है। और जब अधिकतर लोग ब्राह्मणवाद को बुरा कहते हैं तो वो मूल ब्राह्मणों को भी बुरा मानने को विवश हैं। इस ब्राह्मणवाद ने सभी ब्राह्मणों को कठघरे में खड़ा कर दिया जबकि यह पूरी तरह से सत्य नहीं है। ज्यादातर ब्राह्मणवाद से परे हैं लेकिन भीड़ में भीड़ का ही हिस्सा बन जाते हैं। फिर यह जरूरी नहीं कि सभी ब्राह्मण जाति के लोग ब्राह्मणवाद से ग्रस्त हों।  लेकिन आज का सच तो ये भी है कि वो लोग भी जो ब्राह्मण जाति के नहीं हैं वो भी ब्राह्मणों की सोच से प्रभावित हैं। सावित्री बाई फुले पर कीचड़ फैंकने वाले सभी ब्राह्मण नहीं थे, उनमें अन्य जातियों के वो लोग भी थे जो ब्राह्मणवाद से प्रभावित थे। उसके बावजूद भी सावित्री बाई फुले ने अपना संघर्ष जारी रखा। लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि आज सावित्री बाई पर कीचड़ फैंकने वालों को कोई नहीं जानता चाहे वह कोई ब्राह्म्ण रहा हो या फिर कोई और। लेकिन पूरा देश सावित्री भाई फुले को जानता है और उनका नाम हमेशा और हरेक समाज जाना जाता रहेगा। अफसोस की बात है कि पुरुष ब्राह्मणों ने ये भ्रमजाल फैलाया था कि अगर लड़कियां पढ़ेंगी तो उनके पति कम उम्र में ही मर जाएंगे।  इसलिए उन्हें नहीं पढ़ना चाहिए।  लड़कियों को पढ़ाना बुरा ही नहीं अपितु पाप माना जाता था।

आज हम जो भी कहते हैं -  ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’  और जहां तक ​​हम हम लैंगिक समानता की बात कर रहे हैं तो इस देश में जो सुधारवादी लोग हैं जिनका नाम मैं बीच में ले रहा था। जो भी सुधार हुए हैं, उनकी वजह से आज हम ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ कहने वालों को स्वीकार कर पा रहे हैं। अगर हम उस ब्राह्मणवादी नजरिए को लेकर चल रहे होते तो आज हमारे ऊपर गाली पड़ती ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ और हो सकता था कोई आप पर कीचड़ भी फेंकता। विदित हो की ब्राह्मणवादियों द्वारा कहा गया था कि इस चवदार तालाब में कोई दलित पानी नहीं पी सकता। ये तालाब शुद्ध तालाब है। ब्राह्मणों ने कहा कि चवदार  तालाब में आप पानी नहीं पी सकते अगर पीएंगे तो तालाब गंदा हो जाएगा। उसके बाद बाबा साहब अंबेडकर ने एक बहुत बड़ा सत्याग्रह शुरू किया, बहुत बड़ी संख्या में दलित लोग इकट्ठे हुए , उन्होंने उस तालाब का पानी पिया और उसके बाद ब्राह्मणों ने उस तालाब को शुद्ध किया। ब्राह्मणों ने और शुद्धिकरण के बाद परिणाम ये हुआ कि बाबा साहब अंबेडकर को बहुत दुखद बयान देना पड़ा कि जिस तालाब में कुत्ते, बिल्ली, गाय, भैंस पानी पी सकते हैं, लेकिन उस तालाब में इंसान शुद्ध पानी नहीं पी सकता। अंबेडकर ने दलितों को चवदार तालाब से पानी पीने का अधिकार दिलाने के लिए महाड़ सत्याग्रह आंदोलन किया था। यह आंदोलन 20 मार्च 1927 को हुआ था। महाड़ सत्याग्रह  को चवदार तालाब सत्याग्रह  के नाम से भी जाना

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