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तेजपाल सिंह 'तेज' : अंबेडकर होने का मतलब है भीड़ के सामने अकेले खड़ा हो जाना (वैचारिकी)

विमर्श



अंबेडकर होने का मतलब है भीड़ के सामने अकेले खड़ा हो जाना


-तेजपाल सिंह ‘तेज‘



माना जाता है कि समाज का नेतृत्व जनता के पास है, यह सिर्फ़ राजनीतिक नेतृत्व की ही बात नहीं है। अधिकतर बहुजन संगठन दावा करते नहीं थकते कि वे एक मिशन आंदोलन चला रहे हैं। पता नहीं वे कौन सा मिशन आंदोलन चला रहे हैं? वर्तमान सत्ता के दौर में शिक्षा को नष्ट कर दिया गया है… लाखों स्कूल बंद कर दिए गए हैं, विश्वविद्यालयों की हालत ये है कि अधिकतर विश्वविद्यालय निजी हाथों में चले गए हैं। जिनकी फीस ही गरीब जनता के बूते से बाहर है और सरकारी शिक्षा संस्थानों को सरकारी व्यवस्था ही लील गई है।

इतना जरूर है कि इन दिनों बहुजन समाज के लोगों में राजनीतिक आकांक्षा बहुत हद तक बढ़ गई है।हर कोई राजनीति करना चाहता है। हर कोई एक कार्यकारी सदस्य बनना चाहता है। हर कोई राजनेता होना चाहता है। दो लोग मिलकर तीन पार्टियां बना रहे हैं। दोनों अपने-अपने नाम से अलग और एक दोनों न्यूनतम साझा कार्यक्रम के साथ गठबंधन बनाने में लगे हैं। आज के बहुजन राजनीतिक व सामाजिक संगठनों की ये हालत है कि बहुजन समाज पार्टी के अतिरिक्त अनेक राजनीतिक दल भी मैदान में उतर आए हैं हैं। विदित हो कि रिपब्लिक पार्टी के बाद रिपब्लिकन पार्टी ने बहुजनों के लिए जो काम किया, किसी अन्य राजनीतिक दल के बजाय किसी अन्य बहुजन समाज को एक करने के लिए कहा गया। और यही कांग्रेस और भाजपा भी चाहती है। यह भी कि बहुत से बहुजनों को कुछ न कुछ लोभवश बहुत सी जेबी राजनीतिक संगठनों का सृजन का काम करते हैं ताकी बहुजनों वोट किसी भी हालत में एकजुट नहीं हो पाएं। कमाल की बात तो ये है कि बहुजनों के राजनीतिक दल में ही एक दूसरे की टांग खिंचने में लगे रहते हैं। अतिशयोक्ति न होगी कि इसी कारण से ये सारे दल कांगेस या भाजपा के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं और बहुजन-हितों को साधने के विपरीत ही काम करते हैं। खास बात ये है कि सभी राजनीतिक दल बाबा साहेब अंबेडकर के नाम की माला जपने लगे हैं। और अम्बेडकरवादियों के झुण्ड के झुण्ड पनपते जा रहे हैं किंतु हैं अम्बेडकरी सोच से कोसो दूर।

            बामसेफ द्वारा समर्थित 'बहुजन लिबरेशन पार्टी' (बीएमपी) भारत में एक राजनीतिक पार्टी है जिसे 6 दिसंबर 2012 को लॉन्च किया गया था। खबर है कि बीएमपी ने डेमोक्रेटिक जनता दल (6 दिसंबर 2012 को स्थापित) के साथ एक विलय प्रस्ताव दिया था, लेकिन यह प्रस्ताव व्यक्तिगत हिट्स के कार्यकारी कार्यरूप नहीं ले पाया। और इसे एसी, एसटी, एसबीएम) और अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी संघ (बामसेफ) के राजनीतिक विंग के रूप में स्थापित किया गया था। भीम सेना प्रमुख और आज़ाद समाज पार्टी , चन्द्रशेखर आज़ाद रावण ने अन्य क्षेत्रीय आश्रमों के साथ मिलकर प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन बनाया है। अन्य अनेक जेबी बहुजन राजनीतिक शास्त्र की गिनती भी टेडी खीर है।

           हैरत की बात तो ये है ये सभी दल सत्ता पर काबिज होने का स्वपन देखते और जनता को दिखाते है। कहते हैं कि हम आरक्षण लेने वाले नहीं अपित आरक्षण देने वाले बनेंगे। जनता की मुसीबत ये है कि वह किस-किस की बात सुने। किसके साथ जाए किसके साथ न जाए...बेचारी ठग कर रह जाती है। डा. रतन लाल अपने एक भाषण में कहते हैं कि इन दलों से कोई ये पूछे कि बाबा साहब डॉ. अंबेडकर ने कब कहा कि हम ऐसा समाज बनेंगे जो आरक्षण लेगा नहीं बल्कि आरक्षण देगा?  जब ​​आरक्षण खत्म हो रहा था, जब आप यूपीए 1 और 2 में सरकार का समर्थन कर रहे थे, तब क्या आपने सरकार से मिलकर अनुसूचित जाति और अनुसूचित  जनजाति के हित के लिए कोई राष्ट्रीय नीति बनाई/बनवाई थी? डॉ. अंबेडकर कह रहे हैं कि हमारा शोषण इसलिए हो रहा है क्योंकि  हम सरकार की सोच और नीतिनिर्धारण पर गुस्सा नहीं करते।

संवैधानिक आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का 1 अगस्त का आदेश आया है, जिसे हमने थोड़ा पढ़ा है, उसके अनुसार कई नियम और शर्तें हैं। हम कहते है कि सरकार सबसे पहले आंकड़े लेकर आए, जातियों की गिनती करे, जातियों की संख्या कितनी है, किसका कितना अनुपात है। अगर एक जाति की संख्या 100 है और उसमें से केवल 10 लोग नौकरी में हैं, और एक जाति की जनसंख्या 500 है और उसके 15 लोग नौकरी में हैं, तो आप आसानी से हिसाब लगा सकते हैं कि कौन कितने प्रतिशत नौकरी में है। बिना किसी आंकड़े या डेटा के इस पर बात करना बेकार है। और इसका कोई फायदा नहीं है। अंततः इस पर राजनीति ही होगी।  आरक्षण को लेकर  आरोप  लगाया गया कि सारा आरक्षण  यादव और जाटव खा ​​गए हैं।

संदर्भवश बतादू - बजरिए खबर हाट यूट्यूब चैनल (Khabar Haat)  राहुल गांधी ने जब अमेरिका में आरक्षण को लेकर बयान दिया था। तो भाजपा ने भारत में उसे तोड़-मरोड़ कर पेश करके भारतीयों को राहुल गांधी के खिलाफ भड़काने के लिए इस्तेमाल किया। लेकिन अब राज रतन अंबेडकर जो बाबा साहेब अम्बेडकर का परपोता है। राज रतन अम्बेडकर ने माध्यम से अब सच्चाई सामने आ चुकी है। अब शायद आपको ज़्यादा स्पष्ट हो जाएगा। राज रतन ने बयान दिया, “भाजपा ने मुझसे भी संपर्क किया गया था। उस पार्टी के लोगों ने मुझे बताया कि राहुल गांधी ने वाशिंगटन डीसी में आरक्षण के बारे में बयान दिया है उसके खिलाफ़ प्रदर्शन करो, सारे कार्यकर्ता काम पर लगा दो. मुझ पर दो दिन तक वो दबाव रहा कि ये करो, वो करो. लेकिन मैंने विरोध नहीं किया और न ही मैं करने वाला हूँ.

मैं आपको यह इसलिए बता रहा हूं क्योंकि मैं अपना आंदोलन समाज के पैसे से चलाता हूं। इसलिए मुझे मेरा समाज ही आदेश दे सकता है। भाजपा का कोई नेता मुझे आदेश नहीं दे सकता। ना ही मैं भाजपा के आदेश पर कोई कार्यवाही करना चाहता हूँ। अब ये आंदोलन क्या कर रहा है? वाशिंगटन डीसी में राहुल गांधी अपूर्वा रामास्वामी, इस लड़की ने सवाल पूछा - आप कितने दिनों तक भारत में जातिगत आरक्षण को कब तक जारी रखेंगे? क्या आपकी पार्टी आरक्षण रद्द करेगी? तो राहुल गांधी ने जो जवाब दिया वो हर अंबेडकरवादी, अंबेडकरवादी नेता का जवाब होना चाहिए। राहुल गांधी ने कहा था कि जब तक भारत में जाति व्यवस्था रहेगी। जब तक भारत में जातिवाद रहेगा। जब तक भारत में सामाजिक भेदभाव रहेगा। सामाजिक असमानता रहेगी, तब तक भारत में आरक्षण रहेगा। जब तक भारत में जातिवाद रहेगा। तब हम आरक्षण खत्म करने के बारे में सोचेंगे। यह उनका बयान है।

मैं भाजपा या आरएसएस के तहत काम करने वाले नेताओं की बात नहीं कर रहा हूँ। क्या किसी अंबेडकरवादी, सच्चे अंबेडकरवादी को इस कथन से कोई परेशानी होनी चाहिए? दरअसल, यही हमारी भूमिका है। आरक्षण कब तक होना चाहिए? जब तक जाति है, जब तक जातिवाद है, जब तक सामाजिक भेदभाव है। तब तक आरक्षण रहना चाहिए। हम भी आरक्षण खत्म करना चाहते हैं। 75 साल हो गए हैं। हम उस सूची से बाहर निकलना चाहते हैं। लेकिन उस सूची से बाहर निकलने के लिए क्या कोई माहौल है? यह राहुल गांधी ने कहा। इसलिए मैं राहुल गांधी या कांग्रे का समर्थक नहीं हूं। लेकिन हम राहुल गांधी का विरोध क्यों करें? राहुल गांधी हमारे लिए कोई प्रिय व्यक्ति नहीं हैं। कांग्रेस और भाजपा हमारे लिए एक ही हैं।“ राजरतन जी की इस उक्ति के बाद जब हम दलित राजनीतिक पुरोधाओं की ओर देखते हैं तो हैरत होती है कि भीम आर्मी के चंद्रशेखर (लोकसभा सांसद) और बसपा सुप्रीमों बहन मायावती जी भी राहुल गांधी के विरुद्ध भाजपा की हाँ में हाँ मिला रहे हैं।

खैर! अब आगे चलते है। हमें ऐसी व्यवस्था से घिरे हैं कि हमको पता ही नहीं चलता कि जो लोग आंदोलन कर रहे हैं, जो लड़ रहे हैं, वो कितने लोकप्रिय हैं। बाबा साहब के समय में भी ऐसा ही था। यह अभी भी है और आने वाले दिनों में भी रहेगा। जो संघर्ष नहीं करेंगे, संघर्ष की परिभाषा क्या होगी? ईमानदार लोग ही ऐसे काम चलाते हैं।  जिन्होने बहुजन हितों के लिए त्याग किया है, संघर्ष किया है, काम किया है, उन्हें किसी ने किसी रूप उसका परिणाम भी मिला है।  गौतलब है कि भारत में कोई भी रोज़गार के मुद्दे पर बात नहीं कर रहा है। कोई भी शिक्षा के मुद्दे पर नहीं बोल रहा है। बहुजन समाज में इस प्रकार की कोई चर्चा है क्या? कितने बच्चों को फ़ेलोशिप नहीं मिल रही है? हरेक सरकारी कार्यालय में जाकर देखिये, आउटसोर्सिंग हो रही है।  निजीकरण हो रहा है। मंत्रालय में जाकर देख लो, एनजीओ काम कर रहे हैं, वहां बहुजन समाज के 5 लोग भी नहीं मिलेंगे। इस बारे में समाज में कोई तनाव है क्या? नहीं, समाज में कोई तनाव नहीं है।  विदित हो कि डॉ. अंबेडकर कहा करते थे कि  हमें चारों तरफ से लड़ना है। अन्यथा  धर्म, समुदाय, हमें नीची नज़र से देखेंगे। वे हमसे सवाल करेंगे। वे हमसे और हम उनसे लड़ेंगे।

आपके बच्चों को नौकरी नहीं मिल रही है। क्या आपने कभी इस बारे में सोचा है? क्या कभी इस पर बहस हुई है। डॉ. अंबेडकर को कई लोगों ने चुनौती दी थी। उनसे लड़ना पड़ा। हमारे समाज में बौद्धिक नेतृत्व नहीं है। हमारा समाज कुछ लोगों द्वारा नियंत्रित है। अगर हमारे पास बौद्धिक नेतृत्व है, तो इस समाज को अपने हकों को पाने में 15-10 साल और इंतज़ार करना पड़ेगा। पता नहीं तथाकथिक बहुजन नेतृत्व  कौन सा मिशन मूवमेंट चला रहे हैं? शिक्षा बर्बाद हो गई है। स्कूल बंद हो रहे हैं। हम विश्वविद्यालयों की हालत जानते हैं। हम सरकारी दफ्तरों की हालत जानते हैं। हम  जानते हैं कि क्लास 3, क्लास 4 कर्मचारियों की भर्ती को आउटसोर्स कर दिया गया है। उनका निजीकरण कर दिया गया है। इस बारे में कोई आंदोलन नहीं है। उस पर दावा है कि हम मिशन आंदोलन चला रहे हैं।

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