
तेजपाल सिंंह'तेज' : कविता -20- : अकेलेपन की भव्यता (07.03.2025: Write 40 Poems in 40 Days)
07.03.2025: Write 40 Poems in 40 Days)
-20-
अकेलेपन की भव्यता
आज मन में आया
कि तुम्हें माध्यम न बनाकर
सम्बोधन बना लूं
और तुम से उस साहचर्य की
सीधे-सीधे बात करूं
जो सृष्टि के स्फुरण के प्रथम क्षण से
मेरे साथ तुम्हारा रहा है
उस क्षण जब मुझे लगता था
कि यहाँ न सत् है न असत्,
न मृत्यु है न अमृत
जब मैं अनुभव करता था
कि अपनी ही परतों में
लिपटा हुआ गहन अन्धकार है
जब ऐसा महसूस होता था कि
मेरे चारों ओर नीली चादर में लिपटा हुआ
गहरा और घना फैला हुआ
केवल जल ही जल है।
जब मैं नितान्त एकांकी था
मैं अपने अकेलेपन की भव्यता से पीड़ित था
अपनी ही साँसों की ध्वनि सुन रहा था
और तब मेरी साँसों में तुम उभरी थीं
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