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दरिंदगी पर कविता

इस कलयुग के रावण से अब मुझे भी मिलवाओ तुम,

दरिंदों की बराबरी उस शिवभक्त से ना करवाओ तुम।


क्या उस दशानन रावण ने सीता को कभी छुआ भी था,

तन मन नोचा है वहशियों ने फांसी तो दिलवाओ तुम।


ये मोमबत्ती जलाने, तख्तियां उठाने से क्या मिलेगा,

अपनी भीड़ की ताकत से उसे चौराहे पे लटकाओ तुम।


यूं अब तक अपनी बेटी को खाना पकाना सिखाते रहे,

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