![रात ठहर गई है मुझमें's image](/images/post_og.png)
मेरी ज़िंदगी की कैफियत तो पूछिए ही मत,
एक घोर घनी रात ठहर गई है मुझमें I
इसका उजाला न जाने कब आएगा,
उस कैफियत को भी रहने की आदत हो गई है इसमें I I
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एक घोर घनी रात ठहर गई है मुझमें I
इसका उजाला न जाने कब आएगा,
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