जब थी रिश्तों में निभाव की तंगी,
तब छोड़ना पड़ा पीहर I
आ गए थे हम रस्ते पर,
जैसे कि बिन वालिद और शौहर I I
अपना कहने को कोई था नहीं,
यूँ ही चलते चलते मिला एक राहगीर I
जिसने थामा अपनत्व का हाथ,
हमारी नज़रों में साबित हुआ दया का शूरवीर I I
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