एक बार निहार लो मुझे,
मशगुल हो जाऊँगा तुम्हारी अँखियों के झरोखों में I
अगर विश्वास न हो तो,
पूछ लो मेरी हुस्न-ए-मोहब्बत के किस्से जाकर मयखाने में I I
अपनी फ़िक्र तो छोड़ ही दी है मैंने,
क्योंकि मेरी ज़मीर में तुम्हारा वास है I
कहीं ऐसा न हो मेरे दिल का अस्तित्व ही ख़त्म हो जाए,
दिलोदिमाग पर लगती सिर्फ यही खटास है I I
तुम्हारी मुस्कुराहट के बगैर यह जिस्म अधूरा है,
कराहता,सिसकता है यह सिर्फ तुम्हारे दीदार न हो पाने की वजह से I
मेरे शरीर के अंगों का तो मुझ पर है ही नहीं कोई इख्तियार,
रोता है यह सिर्फ एक इतवार की वजह से I I
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