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रात की दीवार पर

आज फिर इक नया ख्वाब लिखते हैं

आने वाली नई सहर' का इक नया आफ़ताब' लिखते हैं


ख़ामोश है सवाल कुछ पिछली कई रातों से

चलो आज उनके भी जवाब लिखते हैं


इक दौर बीता, बीती इक उम्र आजमाइशों में

चलो आज ज़िन्दगी का भी कुछ हिसाब लिखते हैं


क्यूं रोज़ निहारते हो उस चांद को? क्या गुफ्तगू करते हो?

चलो आज ज़मीं पर हम अपना महताब' लिखते हैं

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